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दुःख इधर पैरों के नीचे से निकलता है लेकिन हम कभी बस गड़ा कर दु को नहीं देखते हैं । दुःख से सुख की आशा में हम सदा भागे चले जाते हैं ।
वही व्यक्ति सुख के भ्रम से मुक्त होगा जिसे यह दिखाई पड़ेगा कि सुख जैसा कुछ भी नहीं है । लोटकर पीछे देखो तो स्याल में आ सके। लेकिन इम सदा देखते हैं बागे, इसलिए क्याल में नहीं माता । लोटकर पीछे देखो : ऐसा कोन सा क्षण था जब सुख पाया। तो बड़ी हैरानी होगी पीछे लौटकर देखने से । एकदम मरुस्थल मालूम पड़ता है, जहाँ सुख का कोई फूल कभी नहीं खिला । हालांकि बहुत बार जब अतीत नहीं था, भविष्य था तो हमने सोचा था कि सुख मिलेगा। फिर वह अतीत हो गया बोर हमारी बाशा भविष्य में चली गई । कल जो भविष्य था, आज अतीत हो गया । आज जो भविष्य है, कल अतीत हो जाएगा । और अतीत को मोटकर देखो तो सुख कभी न था । हालांकि ठीक इतनी ही आशा तब भी बी-मिलने की, पाने की, उपलब्धि की । ओर इतनी ही धारणा अब भी है । और आगे भी हम वही कर रहे हैं जो हमने पीछे किया था। आज झेल रहे हैं कल की आशा में । इसलिए आज को देख नहीं पाते । इस सूत्र को समझ लेना चाहिए कि जो व्यक्ति सुख के भ्रम में है वह दुःख का साक्षात्कार नहीं कर सकता है। भविष्य में सुख का भ्रम दुःख का साक्षात्कार नहीं होने देता। बल्कि असलियत यह है कि हम सुख का भ्रम इसलिए पैदा करते हैं ताकि दुःख का साक्षात्कार न हो सके ।
एक आदमी भूखा पड़ा है। वह भूख का साक्षात्कार नहीं कर पाता क्योंकि वह उस वक्त कल जो भोजन बनेगा, मिलेगा उसके सपने देख रहा है । एक आदमी बीमार पड़ा है । वह बीमारी का साक्षात्कार नहीं कर पाता क्योंकि वह कल के उन सपनों में सोया है जब वह स्वस्थ हो जाएगा ।
हम पलायन करते हैं
।
हम पूरे समय चूक गए हैं उन जगह से जहाँ हम है झेलना इतना
जीना पड़ेगा, दुख
वहाँ निरन्तर दुःख है । शायद उस दुःख को चूकना पड़ता है, भागना पड़ता है। जाए तो भागोगे कहां, यह कभी सोचा है ? हमें दुःख में भोगना पड़ेगा, दुःख जानना पड़ेगा, दुःख के साथ आंखें गढ़ानी पड़ेंगी, क्योंकि कोई उपाय नहीं है कहीं ओर जाने का। हम हैं और दुःख है । जो व्यक्ति दुःख का साक्षात्कार कर लेता है वह उस तीव्रता पर पहुँच जाता है, जहाँ से वह लोटता है । जब सब ओर दुःख के कांटे उसे छेद लेते है और भविष्य में कोई
और जहाँ हम हैं
कठिन है कि हमें
सुख का भ्रम टूट
।