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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- २२
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प्रश्न । स्तर दोनों का एक ही है ?
उत्तर : नहीं, स्तर भी एक नहीं है। दोनों अधूरे सत्यों को कह रहे हैं इस मामले भर में एक हैं ।
प्रश्न : शंकर ने बन्द आँख में ध्यान किया तो उसको दुनिया कैसी मालूम पड़ेगी ?
उत्तर : असत्य मालूम पड़ेगी ।
प्रश्न : चार्वाक ने खुली आंख में ध्यान किया तो उसको दुनिया कैसी मालूम पड़ेगी ?
उर : ध्यान किया नहीं, बस खुली आँख रखी। खुली आँख में ध्यान करने का उपाय नहीं है । खुली आँख में तो बाहर का जगत् ही सब कुछ है । और उसी में जिया, पिया, मोज किया और कभी भीतर गया नहीं क्योंकि भीतर जाना पड़ता तो आँख बन्द करनी पड़ती। अभी पश्चिम में एक था जोड़ नाम का विचारक । उससे कई बार लोगों ने कहा कि कभी ध्यान भी करो । गुरजिएफ से वह मिलने गया । तो गुरजिएफ ने कहा कि कभी आँख भी बन्द करो १ उसमे कहा : फुरसत कहाँ, लेकिन सुबह उठता हूँ तो भाग दौड़ शुरू हो जाती है । साँझ जब सोता है तब तक भागता रहता है। ध्यान की फुरसत कहाँ ? अलग वक्त कहाँ ? या मैं जागता हूँ या सोता हूँ । फुरसत कहाँ है ? और तीसरी बात यह कि उपाय कहा है ? कहा या तो जागो या सोयो । सोओ तो तुम ही रह जाते हो, जागो तो सब रह जाते हैं, तुम नहीं रह जाते ।
जोड ने जो कहा, वह ठीक कहा । ऐसे अगर चार्वाक से कोई कहता तो वह कहता : कैसा ध्यान ! जब थक जाते हैं, सो जाते हैं। जब थकान मिट जाती है फिर जग जाते हैं । जीते हैं इन्द्रियों में, इसलिए जीते हैं। अगर जाग सकते हो तो जिओ । जितनी देर जाग सकते हो जिओ । जितना जाग कर जी सको जिओ, जितना भोग सको भोगो । प्रत्येक चीज का रस लो। और भीतर क्या है ? भीतर कुछ भी नहीं है । भीतर एक झूठ है । क्योंकि भीतर जो कभी गया नहीं है, भीतर झूठ हो हो जाएगा । तो चार्वाक बाहर ही जी रहा है । वही उसके लिए सत्य है । शंकर जैसे व्यक्ति भीतर ही जी रहे हैं। तो जो भीतर है वही सत्य है और बाहर का सब असत्य हो गया है । एक अर्थ में ये दोनों समान हैं, इस अर्थ में कि ये आधे सत्य को पूरा सत्य कह रहे हैं। फिर भी चुनाव करना हो तो शंकर चुनने योग्य हैं, चार्वाक चुनने योग्य नहीं है क्योंकि