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महावीर : मेरी दृष्टि में
और खोकर पर बाप दुवारा पाते है तब आपको पता चलता है कि मानन्द या है। निगोद में भी वही था, पर उसे खोना जरूरी था ताकि वह पाया जा सके । असल में को मिला ही हुआ है, उसका हमें पता होना बन्द हो जाता है। जो हमें मिला ही हुआ है, धीरे-धीरे हम उसके प्रति अचेतन हो जाते है, मूछित हो जाते हैं क्योंकि उसे याद रखने की कोई जरूरत ही नहीं होती। ये सवाल ही मिट जाता है हमारे मन से कि वह है क्योंकि वह है हो। यह इतना है कि जब हम ये तब वह था। तो जरूरी है कि उसे फिर से सचेतन होने के लिए खो दिया जाए। संसारमात्मा की यात्रा में खोने का विन्दु है। और वह भी हमारी स्वतंत्रता है।
पर निपोव और मोक्ष में जमीन आसमान का फर्क है। बात बिल्कुल एक ही है। लेकिन निगोद बिल्कुल मूछित है, मोक्ष बिल्कुल अमूखित है। और निगोर को मोम बनाने की यो प्रक्रिया है, वह संसार है। यानी इस प्रक्रिया के बिना निगोद मोक्ष नहीं बन सकता। इसलिए अगर हम स्वतंत्रता के तत्व को समझ लें तो हमें सब समझ में आ जाएगा कि यह सारी यात्रा हमारा निर्णय है, यह हमारा चुनाव है। हमने ऐसा पाहा है, इसलिए ऐसा हुआ है। हमने जो चाहा है, वही हो गया है। कल अगर हम न पाहेंगे इसे तो यह होना बन्द हो जाएगा। परसों अगर हम बिल्कुल न चाहेंगे सब निर्णय छोड़ देंगे, तो वही संन्यास का अर्थ है । जब हम न चाहेंगे, हम छोड़ देंगे । हम नहीं चाहते हैं अब, हम वापिस लौटना शुरू हो जाएंगे। वही बिन्दु हमें फिर उपलब्ध होगी लेकिन हम बदल गए हैं।
इस खोने की यात्रा में हमने विपरीत का अनुभव किया होगा, हमने दरिद्रता जानी होगी । बब सम्पत्ति हमें सम्पत्ति मालूम पड़ेगी, मानन्द हमें आनन्द मालूम पड़ेगा। इसलिए प्रत्येक बात्मा के जीवन में यह अनिवार्य है कि वह संसार में धूमे और इसलिए कई बार ऐसा हो जाता है कि जो संसार में जितने गहरे उतर जाते है, जिनको हम पापो कहते है, वे उतनी ही तीव्रता से वापिस लौट आते है। और दूसरी मोर जो साधारण जन पाप भी नहीं करते, जो संसार में भी पहरे नहीं उतरते, वे शायद मोर की ओर भी उतनी जल्दी नहीं लौटते क्योंकि लौटने में तीव्रता तभी होगी जब दुल और पीड़ा मी तीच हो पाएगी। जब हम इतनी पीड़ा से गुजरेंगे कि लोटना जरूरी हो पाए-लेकिन बगर हम बहुत पीड़ा से नहीं गुजरे है वो शायद लौटना पहरी न हो। पैसे यह पेली लेकर मसम्दीन भागापा-पूरी पेली लेकर भागापा। पीड़ा भारी पी। वह दो