Book Title: Mahavira Meri Drushti me
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Jivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai

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Page 616
________________ प्रश्नोतरप्रवचन-२४ स्वतन्त्रता का उपयोग कर रहा है, जो अजीब आदमी है, हिम्मतबर मोहै, साहसी भी है, क्योंकि दुःख उठाता है और दुःख में जाने के लिए स्वतन्त्रता का उपयोग भी कर रहा है। हो सकता है कि वह इतना दुःख जानकर लोटे कि उसके लिए सुख की गहराइयों का अन्त न रहे। __ सभी को जाना पड़ेगा अंधकार में ताकि वे प्रकाश में भा सके और समो को स्वयं को सोना पड़ेगा ताकि वे स्वयं को पा सकें। यह बहुत अजीब बात मालूम पड़ती है लेकिन बात यही है और अगर कोई इसको भी पूछे कि ऐसा क्यों है तो वह बेमानी पूछता है। ऐसा है और इससे अन्यथा नहीं है। इसके सिवाय जानने का कोई उपाय नहीं है। आग जलाती है। कोई पूछे कि क्यों जलाती है तो हम कहेंगे बस बाग जलाती है । बस एक ही उपाय है । न जलना हो तो हाथ मत डालो आग में। जलना हो तो हाथ डाल दो बाग में । बाग जलाती है। और आग क्यों जलाती है, इसका कोई उपाय नहीं है। और बर्फ क्यों ठंडी है, इसका कोई उपाय नहीं है। बर्फ ठंडी है, आग आग है। पोर्षे जैसी है, वैसी है। स्वतन्त्रता जगत् की मौलिक स्थिति है। इससे अन्यथा नहीं है । आगे जाने का कोई उपाय नहीं है क्योंकि अगर कोई कहे कि किसने यह स्वतन्त्रता दी, तो दी गई स्वतन्त्रता स्वतन्त्रता नहीं होगी। किसी ने स्वतन्त्रता नहीं दी। मगर किसी ने स्वतन्त्रता ली तो स्वतन्त्रता तभी लेनी पड़ती है जबकि परतन्त्रता हो, नहीं तो स्वतन्त्रता लेने का कोई सवाल ही नहीं। अगर स्वतन्त्रता है तो उसे न कोई देता है न कोई लेता है। वह जगत् का स्वरूप है, वह वस्तुस्थिति है, वह स्वभाव है। और उसके उपयोग की बात है। कोई उसको दु:ख के लिए उपयोग करता है, करे, कोई सुख के लिए उपयोग करता है, करे। सुख वाला चिल्ला कर कह सकता है भाई, देखा, उस तरफ जाकर दुःख होगा। फिर भी दुःख वाला कह सकता है कि आप गए तब मैं नहीं चिल्लाया। बाप क्यों परेशान होते हैं ? मुझे जाने दें। तो बात खत्म हो जाती है। इससे ज्यादा कोई मतलब नहीं है। इसलिए मुझे निरन्तर लोग पूछते है कि आप इतना लोगों को समझाते है, क्या हुवा ? तो मैं कहता है कि यह पूछना ही ठीक नहीं है। अगर हम पूछते है तो हम उनकी स्वतन्त्रता में पाषा गलते है। यानी मेरा काम पाकिम पिल्ला दिया। मेरा काम या पिल्लाना। उन्होंने मुझे कहा भी नहीं पाकिपिललामो।

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