Book Title: Mahavira Meri Drushti me
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Jivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai

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Page 623
________________ २ महावीर : मेरी दृष्टि में होने का मतलब इतना ही न है कि सिर्फ दुःखानुभूति । अगर संसार में सिर्फ दुःख की अनुभूति हो तो कोई भटक ही नहीं। फिर तो भटकने का उपाय ही न रहा । भटकता सिर्फ इसलिए है कि सुख की आशा होती है, अनुभूति दुःख की होती है । और सुख मिल जाता है तो मिलते ही दुःख में बदल जाता है। संसार की अनुभूति को दो तीन तरह से देखना चाहिए। एक तो यह कि सुख सदा भविष्य में होता है कि कल मिलेगा। और कल मिलने वाले सुख के लिए आज हम दुःख झेलने को तैयार होते हैं । आज के दु:ख को हम इस आशा में झेल लेते है कि कल सुख मिलेगा। अगर कल सुख की कोई आशा न हो तो बाज के दुःख को एक क्षण भी झेलना कठिन है। उमरखय्याम ने एक गीत लिखा है और उस गीत में वह कहता है कि मैं कई जन्मों से भटक रहा है और सबसे पूछ चुका हूँ कि बादमी भटकता क्यों है । लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलता। और तब मैंने थक कर एक दिन भाकाश से ही पूछा कि तूने तो सब भटकते लोगों को देखा है और उन सबको भी देखा है जो भटकने के बाहर हो गए, बोर उन सबको भी देखता रहेगा जो भटकन में बाएंगे और उनको भी देखता रहेगा जो भटकन के बाहर होंगे। तू ही मुझे बता दे कि आदमी भटकता क्यों है ? तो चारों ओर आकाश से, वह अपने गीत में कहता है, मुझे नावाज सुनाई पड़ी : माशा के कारण । आदमी भटकता क्यों है ? बाशा के कारण । और आशा क्या है ? इस बात की सम्भावना बोर आश्वासन कि कल सुख मिलेगा, मज दुःख झेल लो। बाज का दुख हमसेलते है कल के सुख की बाशा में । फिर जब कल सुख मिलता है तो बड़ो अजीब घटना घटती है। सुख मिलते ही फिर दुःख हो बाता है। जो चीज उपलब्ध हो जाती है वह कुछ भी नहीं होती। कितनी कल्पना की थी कि उसके मिलने पर यह होगा, वह होगा। प्रत्येक व्यक्ति माने अनुभव को पोड़ा जांचेगा तो हैरान होगा कि उसने कितने-कितने सपने संजोए है । फिर वह चीज मिल गई और पाया कि कुछ भी नहबा। वह सबके सब सपने कहाँ सो गर, यह पता ही न चला । वह सब की सब कल्पनार कैसे विलीन हो गई, कुछ पता न चला । चीज हाथ में पाई कि जो-जो उसके मिलने की सम्भावना में छिपा हुमा सुखपा, वह एकदम तिरोहित हो गया। अब तक नहीं मिला था तब तक प्रतीक्षा में सुख था। जब मिल जाता है तब सब सुख समाप्त हो जाता है। फिर दौड़ शुरू हो जाती है क्योंकि वहाँ दुःख है, वहाँ से हम भोगेंगे ।

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