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प्रश्नोत्तर-प्रवचन- २४
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वही रह जाता है क्योंकि हमारी सब दृष्टि बदल जाती है। एक सन्त फिर बच्चा हो जाता है लेकिन एक बच्चा सन्त नहीं हो जाता ।
प्रश्न : तो फिर मोक्ष की अवस्था में अगर वह वापिस आना चाहेसमभो करुणावश, फिर वह चुन सकता है, चुनाव तो फिर भी हो सकता है ?
उत्तर : बिल्कुल चुनाव हो सकता है। लेकिन सिर्फ करुणावश हो । लेकिन फिर वह संसार में आता नहीं है । हमें दिखता भर है आया हुआ । यह भी समझ लेना जरूरी है कि हम जिस भांति संसार में आते हैं फिर वह उस भांति संसार में नहीं आता ।
मैंने पीछे कहीं एक वक्तव्य दिया है । जापान में एक फकीर था जो कुछ चोरी कर लेता और जेलखाने चला जाता । उसके घर के लोग परेशान थे । वे कहते थे कि हमारी बदनामी होती है तुम्हारे पीछे और तुम आदमी ऐसे हो कि तुम्हें प्रेम करना पड़ता है और तुम्हारे पीछे हम भी बदनाम होते हैं। जब तुम बूढ़े हो गए, अब तुम चोरी बंद करो। लेकिन फिर वह कहता है कि वह जो जेल में बंद हैं, उनको खबर कौन देगा कि बाहर कैसा मजा है । मैं उन्हें खबर देने जाता है और कोई रास्ता नहीं इसलिए कुछ चोरी कर लेता हूँ और जेल चला जाता है । और वहाँ जो बंद हैं उनको खबर देता हूँ कि बाहर स्वतन्त्रता कैसी है । उनको कौन खबर देगा अगर वहाँ चोर ही चोर जाते रहेंगे ? लेकिन इस फकीर का जाना भिन्न है वहीं जाता ही नहीं । क्योंकि यह चोरी चोरी के हथकड़ियाँ डाली जाती हैं तब भी यह कैदी नहीं है और जब यह किया जाता है तब भी यह कैदी नहीं है । यह कंद से बाहर का बल्कि और कैदियों को भी मुक्त करने के स्याल से आया हुआ है ।
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और यह फकीर लिए नहीं करता।
एक अर्थ में जब इसके
जेल में बंद
आदमी है
तो जब बुद्ध या महावीर या जीसस जैसा आदमी जमीन पर आता है तो हमें लगता है कि वह आया । सच में वह आता नहीं है । यह संसार अब उसके लिए संसार नहीं है । अब यह उसके अनुभव की यात्रा नहीं है । अब इसमें उसकी कोई पकड़ नहीं है, कोई जकड़ नहीं है । अब इसमें कोई रस नहीं है । इसमें कुल करुणा इतनी है कि वे जो और भटक रहे हैं उनको वह खबर दे
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यहां करुणावश उतरना
जाए कि एक और लोक है जहां पहुंचना हो सकता है। हो सकता है। लेकिन यह करना अन्तिम . बासमा है से देखें तो कहना में भी थोड़ा सा अज्ञान शेष है जिसको बज्ञान नहीं कह
क्योंकि अगर बहुत गौर