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महावीर : मेरी दृष्टि में
उनमें जो भी थोड़े समझदार जीवित
लोग शेष थे। साथ आ गए। जो नहीं थे, जिद्दी थे, अन्धे थे, आग्रह को पकड़ कर चलते गए ।
फिर महावीर जैसे व्यक्तियों का जन्म पिछले व्यक्तियों से नहीं जोड़ा जा सकता । जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है । जब भी जगत् में जरूरत होती है, प्राण पुकार करते हैं, तब कोई न कोई उपलब्ध चेतना करुणावश वापस लोट जाती है । जैरूरत पर निर्भर है, हमारी पुकार पर निर्भर है। जैसे इस युग में धीरे-धीरे पुकार कम होती चली गई है। एक वक्त था कि लोग ईश्वर को इन्कार करने का भी कष्ट करते थे । अब लोग ऐसे हैं जो इम्कार करने का कष्ट भी नहीं उठाना चाहते । ईश्वर को इन्कार करने में भी उत्सुकता थी । जो इन्कार करता था, वह रस लेता था । अब ऐसे लोग हैं जो कहेंगे : 'बस छोड़ो, ठीक है । हो तो हो, न हो तो न हो ईश्वर का प्रस्तित्व इन्कार करने की भी किसी की फुरसत नहीं है । स्वीकार करने की आशा तो बहुत दूर है। लेकिन इन्कार कैरने के लिए भी फुरसत नहीं है। नोत्से ने कहा है कि वह वक्त जल्दी आएगा जब ईश्वर को कोई इन्कार भी न करेगा। तुम उस दिन के लिए तैयार रहो । ठीक कहा उसने । पूरे युग की भावदृष्टि बताती है कि स्थिति क्या है ।
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कि पिछले तीर्थंकर के
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साधक थे, वे महावीर के रखते थे वे अपनी लीक
जिसकी हमारे गहरे प्राणों में आकांक्षा और प्यास होती है, वह आकांचा और प्यास ही उसका जन्म बनती है। एक गड्डा है। पहाड़ पर पानी गिरता है । पहाड़ पर नहीं भरता पानी गिरता पहाड़ पर है, भरता गड्ढे में है। गड्ढा तैयार है, प्रतीक्षा कर रहा है। पानी भागा हुआ चला आता है, गड्ढे में भर जाता है। शायद हम में से कोई यह कहे कि पानी की बड़ी करुणा है कि वह गड्ढे में भर गया, गड्ढे की बड़ी पुकार है । क्योंकि वह खाली है इसलिए पानी को आना पड़ा। बाकी गहरे में दोनों बातें एक साथ सच हैं। जब भी जरूरत है, जब भी प्राण प्यासे हैं तब कोई भी उपलब्ध चेतना, इस गड्ढे को भरने के लिए उतर आती है। महावीर के वक्त पुरानी
परम्परा चलती थी,
पुराने
गुरु
थे। पर वे मृत थे । कोई जीवन उनमें न था । इसलिए उनके आविर्भाव पर कोई असंगति की बात नहीं कही जा सकती ।
प्रश्न : महावीर ने हमें गया क्या दिया ? प्रेम की चर्चा तो जब से मनुष्यजाति है तब से हीं होती आई है।
उत्तर : सत्य न तो नया है न पुराना । सत्य सदा है। जो सहा है वह न कभी पुराना होगा और न कभी नया हो सकता है। जो नया होता है, वह कल