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नया उपद्रव करेगा और कुछ भी नहीं कर सकता को स्थापित करने की चेष्टा में नहीं है ।
महाबीर : मेरी दृष्टि में
। तो मैं किसी मानव धर्म
मेरी चेष्टा कुल इतनी है कि धार्मिकता क्या है, धार्मिक होने का मतलब क्या है । यह साफ हो जाए और जगत् में धार्मिक होने की आकांक्षा जग जाए । और फिर जिसको जिस ढंग से धार्मिक होना हो वह हो जाए। वह कैसी टोपी लगाए, वह चोटी रखे कि दाढी रखे, वह कपड़े गेरुए पहने कि सफेद पहने, मन्दिर में जाए कि मस्जिद में, पूरब में हाथ जोड़े कि पश्चिम में, यह एक-एक व्यक्ति की स्वतन्त्रता होगी। इसके लिए कोई संगठन, कोई शास्त्र, कोई परम्परा आवश्यक नहीं है । मैं इस चेष्टा में नहीं हूँ कि एक मानव धर्म स्थापित हो, मैं इस चेष्टा में हूँ कि धर्मों के नाम से सम्प्रदाय बिदा हो जाएं। बस वह जगह खाली कर दें। उनकी कोई जगह न रह जाए ।
आदमी हो, सम्प्रदाय न हो, और आदमी को धार्मिक होने को कामना पैदा हो, उसका प्रयास हो, फिर हर आदमी अपने ढंग से धार्मिक हो और जिसको जैसा ठीक लगे वैसा हो । सिर्फ धार्मिक होने की बात समझ में आ जाए, उतनी बात ख्याल में आ जाए तो दुनिया में धार्मिकता होगी, सम्प्रदाय नहीं होंगे । लेकिन कोई मानव धर्म नहीं बन जाएगा । धार्मिकता होगी। और एक-एक व्यक्ति अपने-अपने ढंग से धार्मिक होगा । और जगत् में दो तरह के लोग रह जाएंगे - धार्मिक और अधार्मिक । अधार्मिक होंगे वे जो धार्मिक होने के लिए राजी नहीं है ।
लेकिन मेरी दृष्टि यह है कि अगर सम्प्रदाय मिट जाएं तो अधार्मिक आदमी बहुत कम रह जाएँगे क्योंकि बहुत से लोग इसलिए अधार्मिक है कि साम्प्रदायिक लोगों की मूर्खताएं देखकर वे धर्म के साथ खड़े होने को राजी नहीं हैं । कोई बुद्धिमान आदमी इनके साथ खड़ा नहीं हो सकता । ये बुद्धुओं की इतनी बड़ी जमाते हैं कि इनमें बुद्धिमान आदमी का खड़ा होना मुश्किल है। तो वह अन्ततः अधार्मिक दिखने लगता है । खोजबीन की जाए तो शायद पता चले कि उसके धार्मिक होने की अभिलाषा इतनी तीव्र थी कि इसमें से कोई उसे तृप्त नहीं कर सका। इसलिए वह अलग खड़ा हो गया ।
अगर सम्प्रदाय मिट जाएं तो दुनिया में धार्मिक आदमी के प्रति विरोध भी विलीन हो जाएगा । और धार्मिकता इतने आनन्द की बात है कि असम्भव है ऐसा आदमी लोजना जो धार्मिक होना न चाहता हो । लेकिन धार्मिकता बननी