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प्रश्नोत्तर-प्र
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हैं। मेरा तो कोई पक्ष नहीं, कोई मत नहीं । महावीर से मुझे प्रेम है, इसलिए मैं महावीर की बात करता है; बुद्ध से मुझे प्रेम है, मैं बुद्ध की बात करता हूँ; कृष्ण से मुझे प्रेम है, मैं कृष्ण की बात करता है; क्राइस्ट से मुझे प्रेम है, मैं क्राइस्ट की बात करता हूँ। मैं किसी का अनुयायी नहीं हूँ। किसी का मत चलना चाहिए, इसका भी पक्षपाती नहीं हूँ । इस बात का जरूर आग्रह मन में है कि इन सबको समझा जाना चाहिए। क्योंकि इन्हें समझने से बहुत परोक्षरूप से हम अपने को समझने में समर्थ होते चले जाते हैं । इनके पीछे चलने से कोई कहीं नहीं पहुँच सकता । लेकिन इन्हें अगर कोई पूरी तरह से समझ ले तो स्वयं को समझने के लिए बड़े गहरे आधार उपलब्ध हो जाते हैं ।
की जा सकती ।
दूसरी बात यह है कि क्या मानवधर्म की स्थापना नहीं यह सब नासमझी की बातें हैं। दुनिया में कभी एक धर्म स्थापित नहीं हो सकता । असल में सभी धर्मों ने यह कोशिश की है। और इस कोशिश ने इतना पागलपन पैदा किया जिसका कोई हिसाब नहीं । इस्लाम भी यही चाहता है कि एक ही धर्म - इस्लाम – स्थापित हो जाए । ईसाई भी यही चाहते हैं कि उन्हीं का धर्म स्थापित हो जाए । बौद्ध भी यही चाहते हैं । जैन भी यही चाहेंगे कि उन्हीं का धर्म रह जाए । मानवधर्म वही होगा जो उनका धर्म है । अपने धर्म को वह मानव मात्र का धर्म बना लेना चाहते हैं । यह कोशिश असफल होने को बनी हुई है। क्योंकि मनुष्य-मनुष्य इतना भिन्न है कि कभी एक धर्म होना असम्भव है । धार्मिकता हो सकती है एक में। इस दोनों बातों के भेद को भी समझ लीजिए ।
मैं किसी मानव धर्म के पक्ष में नहीं है । क्योंकि अगर मैं मानव धर्म की कोशिश में लगूं तो वह सिर्फ हजार धर्मों में एक हजार एक और होगा । इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा। सभी धर्म मानव-धर्म की आवाज लेकर आए और मनुष्य का एक धर्म स्थापित करने की चेष्टा की लेकिन उन्होंने एक की संख्या और बढ़ा दी और कोई अन्तर नहीं पड़ सका । मेरी दृष्टि यह है कि मानव धर्म एक हो यह बात ही बेमानी है। धार्मिकता हो जीवन में। धार्मिकता के लिये किसी संगठन की जरूरत नहीं कि सारे मनुष्य इकट्ठे हों, एक ही मस्जिद में, एक ही मन्दिर में, एक ही झंडे के नीचे । यह सब पागलपन की बातें हैं । धर्म का इनसे कोई लेना-देना नहीं। हाँ पृथ्वी धार्मिक हो इसकी चेष्टा होनी चाहिए । मनुष्य धार्मिक हो इसकी चेष्टा होनी चाहिए। कोई एक मनुष्य धर्म निर्मित करता है तो फिर वहीं पागलपन शुरू होगा और फिर एक सम्प्रदाय खड़ा होकर