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महावीर : मेरी दृष्टि में
हो गया तो ऐसा लगता है कि और बड़ा घर मिल गया, विराट् सा घर । उसमें पहलाधर छूट नहीं गया, सिर्फ वह बड़े घर का हिस्सा हो गया। यह हमारे ख्याल में आ जाए तो त्याग का एक नया अर्थ ख्याल में आ जाएगा।
त्याग का अर्थ कुछ छोड़ना नहीं, त्याग का बहुत गहरा अर्थ विराट को पाना है । लेकिन त्याग शब्द में खतरा है । उसमें छोड़ना छिपा हुआ है। उसमें लगता है कि कुछ छोड़ा है। मेरी दृष्टि में, महावीर या बुद्ध या कृष्ण जैसे लोगों को त्यागी कहने में बुनियादी भूल है। इनते बड़ा भोगी खोजना असम्भव है। अगर अर्थ समझ लें तो त्याग का अर्थ है कुछ छोड़ना, भोगो का अर्थ है कुछ पाना।
महावीर से बड़ा कोई भोगो होना असम्भव है क्योंकि जगत् में जो भी है सब उसका ही हो गया है; उसका भोग भी अनन्त हो गया है, उसका घर भी अनन्त हो गया है, उसकी स्वांस भी अनन्त हो गई है, उसका प्राण भी अनन्त हो गया है, उसका जीवन भी अनन्त हो गया है। इतने विराट को भोगने की सामर्थ्य क्षुद्र चित्त में नहीं होती। क्षुद्र, क्षुद्र को हो भोग सकता है इसलिए वह क्षुद्र को पकड़ लेता है । लेकिन जब विराट् होने लगे तो ?
एक नदी है, वह चलती है हिमालय से और सागर में गिर गई है। दो तरह से देखी जा सकती है यह बात । कोई नदी से पूछ सकता है : तूने पुराने किनारे क्यों छोड़ दिए? तूने पुराने किनारों का त्याग क्यों किया? ऐसे भी पूछा जा सकता है नदी से : किनारे क्यों छोड़े तूने ? और नदी ऐसा भी कह सकती है कि किनारे मैंने छोड़े नहीं, किनारे अनन्त हो गए हैं। किनारे अब भी हैं। लेकिन अब उनकी कोई सीमा नहीं है। अब वे असीम हो गए हैं । अब जो छोटे-छोटे किनारे थे, एक छोटी सी धारा बहती थी और रोज छोटे किनारे छोड़ती चली आई है इसलिए बड़ी होती चली गई। गंगोत्री पर बड़ा छोटा किनारा था गंगा का। फिर आकर सागर के पास बड़े-बड़े किनारे हो गए। लेकिन फिर भी किनारे थे। फिर सागर में उसने अपने को छोड़ दिया । सागर के बड़े किनारे हैं, लेकिन फिर भी किनारे हैं । कल वह भाप बनेगी और आकाश में उठ जाएगी और किनारे छोड़ देगी, कोई किनारा नहीं रह जाएगा। ___ जीवन की खोज मूलतः किनारों को छोड़ने को या बड़े किनारों को पाने की खोज है। लेकिन जिसको असीम और अनन्त मिल जाता हो उससे जब हम पूछने जाते है कि तुमने किनारे क्यों छोड़े तो क्या उत्तर होगा उसके पास ? वह