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महावीर : मेरी दृष्टि में
होते हैं। यह दोनों बातें एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब तक हम दूसरे के तब तक हम खुद पर कपड़े ढाँकना चाहते हैं । लेकिन शरीर को नग्न देखने का भाव चला गया हो वह खुद महावीर नग्न खड़े हो गए । लेकिन कुछ लोग हैं जो अपने को नंगा दिखाना चाहते हैं । यह पागलों का वर्ग है। तो महावीर के पासपास ऐसे संन्यासी हो गए हैं जो यह चाहते हैं कि कोई उन्हें नंगा देखे यानी उनकी चाह बिल्कुल दूसरी है। लेकिन घटना एक सो मालूम होती है
कपड़े उघाड़ना चाहते हैं जिस आदमी का दूसरे के नग्न खड़ा हो सकता है ।
अभी यूरोप में और कई मुल्कों में ऐसे लोग हैं जो रास्ते के किनारे पर खड़े रहेंगे। जब कोई अकेला निकल रहा है तो पेन्ट खोलकर, नंगा होकर एकदम भाग जाएंगे उसको दिखाकर इन पर रोक है कि ये आदमी खतरनाक है । अब इनको क्या हो रहा है ? इनको क्या रस आ रहा है ? दूसरा इनको नंगा देख ले यह इनका रस है । और ये पागल हैं । ये निपट पागल हैं । लेकिन हिन्दुस्तान में ये नंगे साधु हो सकते हैं और तब इनका पागलपन हमको पता ही नहीं चलेगा |
अब कठिनाई यह है कि जीवन में दोनों घटनाएँ घट सकती हैं । एक आदमी इसलिए नग्न हो सकता है कि अब उसके मन में नग्नता को छिपाने, ढाँकने, देखने का कोई भाव ही नहीं रहा । वह परम सरल हो गया है तो बच्चे की तरह नग्न हो सकता है । और एक आदमी पागल की तरह नग्न हो सकता है लेकिन नग्न होने में उसे रस है कि लोग उसे नंगा होते हुए देखें | और यह दोनों घटनाएँ एक साथ घट सकती हैं । इसलिए बड़ी कठिनाई है जीवन को साफ-साफ समझने में । लेकिन कठिनाई पहचानी जा सकती है, नियम बनाए जा सकते हैं । जो आदमी सरलता की वजह से नग्न हुआ है, वह जीवन के और हिस्सों में भी सरल होगा। मगर जिसे नग्नता का आनन्द है उसके लिए यह भोग का ही हिस्सा है । उसके लिए, कपड़े छोड़े, जोर इस पर नहीं, लेकिन नग्नता आई, जोर इस पर है । दूसरी ओर एक आदमी ऐसा है जिसका जीवन इतना सरल हो गगा जैसे एक बच्चे का, पशु-पक्षी का वह नग्न खड़ा हो गया । लेकिन यह आदमी जीवन के दूसरे हिस्सों में एकदम सरल होगा, निष्कपट होगा, निर्दोष होगा । इसके जीवन के दूसरे हिस्सों में
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सरल और निर्दोष कि
कहीं पागलपन के लक्षण नहीं होंगे। है कि दूसरे लोग उसको नंगा देखें,
लेकिन जो आदमी सिर्फ इसलिए नग्न हुआ यह उसकी बीमारी है । वह आदमी दूसरे