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महावीर । मेरी दृष्टि में
रोको जबर, आनन्द बहुत होगा लेकिन बातें शायद ही हों। पर उन्होंने कहा : बातें क्यों न होंगी? कबीर ने कहा कि वे तो फरीद आ जाए तो पता चले । फरीद को रोक लिया गया। वे दोनों गले मिले। वे दोनों हसे। वे दोनों पास बैठे। दो दिन बीत गए लेकिन कोई बात नहीं हुई। सुनने वाले बहुत ऊब गए है, बहुत घबड़ा गए हैं। फिर बिदाई भी हो गई। फिर कबीर गांव के बाहर जाकर छोड़ भी आए। वे गले मिले, रोए भी लेकिन फिर भी नहीं बोले । छूटते ही कबीर के शिष्यों ने पूछा : यह क्या पागलपन है ? दो दिन आप बोले ही नहीं। कबीर के शिष्यों ने पूछा : यह क्या हुआ ? हम तो घबड़ा गए। दो दिन कैसे चुप रहे ? कबीर ने कहा : जो मैं जानता हूं, वही फरीद जानते हैं। अब बोलने का उपाय क्या है ?
दो अज्ञानी बोल सकते हैं, एक ज्ञानो और एक अज्ञानी बोल सकता है। दो ज्ञानियों के बोलने का उपाय क्या है ? और जो बोलता है वह नाहक अज्ञानी बन जाता है क्योंकि वह जो बोल कर कहता है वह दूसरे ने जो जाना है उससे छोटा होता है। और एक बोल कर कहता है तो जानते हुए कि सामने बोल कर कहना बहुत कठिन बात है। क्योंकि उसको लगता है कि उसका जाना हुआ तो अपार है और बोला हुआ छोटा है । तो जो बोलता है वह नासमझ होता है।
फरीद के शिष्यों ने पूछा तो फरीद ने कहा क्या बोलते ? कबीर के सामने क्या बोलते ? बोल कर में फंसता। क्योंकि जो बोलता है वह बोलने से हो गलत हो जाता है। जो जान गया है उसके सामने बोला हुआ सब गलत है। सब न जाना गया हो तो तभी बोला हुमा सच मालूम पड़ता है । लेकिन जिसने जाना हो उसके सामने बोला हुआ इतना फीका है, जैसे मैंने आपको देखा हो निकट से, जाना हो, पहचाना हो और फिर मुझे कोई सिर्फ आपका नाम बता दे और नाम का हो परिचय बता दे तो नाम क्या परिचय बनेगा? जिस व्यक्ति को मैं जानता हूँ उसका नाम क्या परिचय बनेगा? हाँ, जिसको हम नहीं जानते उसके लिए नाम भी परिचय बन जाता है। लेकिन जिसको हम जानते हैं उसके नाम से क्या फर्क पड़ता है ? नाम कोई परिचय नहीं बनाता । नाम कोई परिचय है क्या? फरीद ने कहा कि जरूरी था कि मैं चुप रह जाऊं क्योंकि बोल कर जो मैं कहता, वह सिर्फ नाम होता। और उस आदमी ने जो जाना उसका नाम लेना एकदम बड़ी भूल होती।
तो वहाँ मान ही यहाँ मेव नहीं है और जहां शम्ब है वहाँ मेव है। जैसे ही शब्द का प्रयोग करना शुरू हुबा, भेद पड़ने शुरू हो गए । जैसे हम सूरज की