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महावीर : मेरी कृषि तो इसलिए किसी भी घटना में बहुत गहरे उतरने की जरूरत है। अब तक हमें ख्याल में आ सकता है कि क्या प्रयोजन रहा होगा । और न भी ख्याल में आए तो भी जल्दी निष्कर्ष बहुत मंहगी चीज है । और महावीर जैसे व्यक्ति के प्रति तो जल्दी निष्कर्ष बहुत ही मंहगा है क्योंकि उन्हें समझना बहुत कठिन है । जिस जगह हम खड़े होते हैं, वहां से जो हमें दिखाई पड़ता है, हम वहीं तक सोच सकते हैं । जिन्हें दूर तक दिखाई पड़ता होगा, वे क्या सोचते हैं, कैसे सोचते हैं, वे सोचते भी है कि नहीं सोचते हैं यह सब हमारे लिए विचार करना मुश्किल है। वे किसी भांति जीते हैं, क्यों उस भांति जीते हैं, अन्यथा क्यों नहीं जीते यह भी हमें सोचना मुश्किल हो जाता है। हम ज्यादा से ज्यादा अपना ही रूप प्रोजेक्ट कर सकते हैं। हम यहीं सोच सकते हैं कि इस हालत में हम होते तो क्या करते, दो आदमियों को न मरने देते, या फिर तोनों को हो मरने देते । ये दो ही उपाय थे हमारे सामने । पर हमें उस चेतनास्थिति का कोई अनुभव नहीं है, जो बहुत दूर तक देखती है, और जिसका हमें कोई ख्याल नहीं है। ___महावीर और गोशालक एक गांव से गुजर रहे थे। गोशालक ने कहा : जो होने वाला है वही होता है । महावीर कहते है : ऐसा ही है, जो होने वाला है वही होता है । पास में ही जिस खेत से वे गुजर रहे हैं, दो पंखुड़ियों वाला एक पौधा लगा हुआ है, जिसमें अभी कलियां हैं जो कि कल फूल बनेंगी। गोशालक उस पौधे को उखाड़ कर फेंक देता है और कहता है कि यह पौधा फूल होने वाला था, और अब नहीं होगा। वे दोनों गांव से भिक्षा लेकर वापस लौटते हैं । इस बीच पानी गिर गया है, पानी गिरने से कीचड़ हो गया है और उस पौधे ने कीचड़ में फिर जड़ें पकड़ ली हैं, वह फिर खड़ा हो गया है । जब वह उस जगह से वापस लौटते हैं, तो महावीर उससे कहते हैं कि देख ! वह 'कली फूल बनने लगी। वह पौषा लग गया है जमीन से और कली फूल बन
जिसे दूर तक दिखाई पड़ता है उसे बहुत सी बात दिखाई पड़ती है जो हमारे ख्याल में भी नहीं आती और जिन्दगी बहुत लम्बा विस्तार है। जैसे कोई एक उपन्यास के पन्ने को फाड़ डाले और उस पन्ने को पढ़े तो क्या तुम सोचते हो कि उस पन्ने से पूरे उपन्यास के बाबत कोई नतीजा निकल सकता है । हो सकता है कि उपन्यास का बिल्कुल उल्टे नतीजों पर अन्त हो। जो उस पन्ने पर लिखा हो उससे भिन्न चला जाए क्योंकि यह पन्ना सिर्फ उस लम्बी पुस्तक का