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महावीर ; मेरी दृष्टि में
में कहानी है कि जहाँ भी मुहम्मद जाते, एक बदली सदा उनके ऊपर छाया किए रहती । अब जिन लोगों ने भी मुहम्मद को जाना है, जो उनके पास जिए होंगे, उनको लगा होगा कि ऐसे आदमी पर सूरज भी धूप करे, यह ठीक नहीं । ऐसे आदमी पर बदली भी ख्याल रखे यह बिल्कुल ठीक है। यह बड़ा गहरा भाव है जो कवि ने, देखने वाले ने, प्रेम करने वाले ने बदली पर फैला दिया है जो उनके मन में था । कविता तो ठीक थी लेकिन फिर यह तथ्य की तरह हो गई ।
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तो मैं मानता हूँ कि सभी महापुरुषों के, सभी उन अद्वितीय व्यक्तियों के, आस-पास हजार तरह के काव्य को जन्म मिलता है । उस काव्य को बाद के लोग इतिहास समझ लेते हैं और तब उन व्यक्तियों का जीवन ही झूठा हो जाता है । और अगर हम सिर्फ तथ्य लिखें तो तथ्य रखे मालूम पड़ते हैं । उन पर काव्य चढ़ाना ही पड़ता है, नहीं तो वह बड़े रूखे-सूखे हो जाते हैं । जैसे समझें हम कि एक व्यक्ति किसी स्त्री को प्रेम करता हो तो प्रेम में वह ऐसी बातें कहे जो तथ्य नहीं है लेकिन फिर भी सत्य हैं । और जरूरी नहीं कि कोई चीज तथ्य न हो तो सत्य न हो । नहीं तो काव्य खत्म ही हो जाएगा, फिर काव्य का कोई सत्य ही नहीं रह जाएगा । और कुछ लोग ऐसे हैं, जैसे प्लेटो । वह कहता है कि कवि नितान्त झूठे हैं और दुनिया से जब तक कविता नहीं मिटती तब तक झूठ नहीं मिटेगा । ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि कविता नितान्त झूठी है । लेकिन उनके विपरीत लोग भी हैं और उनकी पकड़ ज्यादा गहरी है । वे कहते हैं अगर कविता ही झूठी है तो फिर जीवन में कोई सच ही नहीं रह जाता, फिर जीवन सब व्यर्थ है । अब एक युवक एक युवती को प्रेम करता हो तो वह कहता है तेरा चेहरा चाँद की तरह है । अब यह बात बिल्कुल अतथ्य है, इससे झूठी कोई बात हो सकती है क्या ? किसी स्त्री का चेहरा चाँद की तरह कैसे हो सकता है ? अगर आइंस्टीन से जाकर कहो कि हम ऐसा मानते हैं कि एक स्त्री का चेहरा चाँद की तरह है तो वह कहेगा कि तुम पागल हो गए हो । चांद का इतना वजन है कि एक स्त्री क्या, पृथ्वी की सारी स्त्रियों इकट्ठी होकर उस वजन को नहीं झेल पाएँगी । तो स्त्री का चेहरा चांद-सा कैसे हो सकता है । चाँद पर बड़े खाई खड्ड हैं। कहीं का बेहूदा ख्याल तुम्हारे दिमाग में आया है कि तुम एक स्त्री को चांद सा बता रहे हो । लेकिन जिसने कहा है, वह फिर भी कहेगा कि नहीं ! चेहरा तो चांद ही है । असल में वह कुछ और ही कह रहा है। वह कह रहा है कि चांद को देखकर जैसे मन में छाया छू जाती है, चांद की धार छूट जाती है, किसी का चेहरा देखकर भी वैसा हो सकता है ।