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महावीर : मेरी दृष्टि में
सम्राट् वापस लोटा । उसने अपने वजीरों से कहा कि उन्हें कुछ न कुछ तो भेंट देनी ही चाहिए । लेकिन ऐसी कौन सी बहुमूल्य चीज है जिसे मैं वहाँ ले जा सकूं। तो उन वजीरों ने कहा कि वह तो सिर्फ आप ही हो सकते हैं। लेकिन आपको बदल कर जाना पड़ेगा, साधु होकर जाना पड़ेगा क्योंकि वह बहुमूल्य चीज सिर्फ साधुता ही हो सकती है जो उस पहाड़ पर, उस एकान्त जंगल में भी पहचानी जा सके । आदमी के मूल्य तो राजधानी की सड़कों पर पहचाने जा सकते हैं । परमात्मा के मूल्य एकान्त में ही पहचाने जा सकते हैं । जहाँ कोई भी पारखी नहीं है वहीं वे परखे जा सकते हैं । साघुता का अर्थ ही खो गया है आजकल । तो साधु के नाम से बैठे हैं वे आमतौर से बदले हुए गृहस्थ हैं, जिन्होंने कपड़े बदल लिए हैं मगर गृहस्थी का ही काम कर रहे हैं।
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एक साधु मुझसे मिलने आए। मैंने उनसे कहा कि आप मुँहपट्टी क्यों बांधे हुए है ? यह सच में आपको लगती है कुछ बांधने जैसी ? उन्होंने कहा : बिल्कुल नहीं लगती। मैंने कहा कि इसे छोड़ दे आप | उन्होंने कहा कि अगर छोड़ दें तो कल खाने पीने का क्या होगा ? कौन सम्मान देगा ? यह मुँहपट्टी की वजह से सब व्यवस्था | यह गई कि सब व्यवस्था चली जाएगी ।
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अब यह मुंह- पट्टी की व्यवस्था का इन्तजाम है । हम मुँह-पट्टी बांधते हैं, हम गेरुआ वस्त्र पहनते हैं क्योंकि ये सब हमारी सुरक्षा के साधन हैं । जैसे हम कुछ इन्तजाम कर रहे हैं, ऐसा यह साधु भी इन्तजाम कर रहा है । यह भी हिम्मत करने को राजी नहीं है कि खड़ा हो जाय कि कोई दे देगा तो ठीक, नहीं देगा तो ठीक; रोटी मिलेगी तो ठीक, नहीं मिलेगी तो ठीक। इतनी हिम्मत जुटाकर खड़ा न हो जाए तो इसे गृहस्थ से भिन्न कहने का क्या कारण है ? सिर्फ एक ही कारण है कि गृहस्थ दूसरों का शोषण करता है, यह गृहस्थों का शोषण करता है । गृहस्थ शोषण करता है तो वह उसकी वजह से पापी हुआ जा रहा है । ओर यह उन पापियों का शोषण करता है तो उसकी वजह से पापी नहीं हो रहा है । यह किसी बन्धन में नहीं है । इसने बंधन में न होने का भी इन्तजाम किया हुआ है । लेकिन इन्तजाम हो बन्धन है यह इसे ख्याल में नहीं है ।
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तो यह साधु की जो कल्पना महावीर के मन में है, उस कल्पना का साघु इतना विनम्र होगा कि उसे विनीत होने की जरूरत ही नहीं है । विनोत होना पड़ता है सिर्फ अहंकारियों को । वह इतना सरल होगा कि कोम साधु है, कौन गहस्य है इसकी पहचान मुश्किल हो जाएगी। लेकिन जो उन्होंने कही है, वह