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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२०
सिर्फ यह है कि सूक्ति व्यक्ति को, जागृत व्यक्ति सम्मान नदे। लेकिल मजा यह है कि बिना इसकी फिक्र किए कि हम जागृत है या नहीं, सम्मान न दिया जाए तो सब गड़बड़ हो जाता है। उसमें भाषी शर्त ख्याल में रखी गई है कि जागृत व्यक्ति मूछित को सम्मान न दे। दूसरा व्यक्ति मूछित है, यह पक्का है ? लेकिन हम जागृत हैं या नहीं, यह अगर पक्का नहीं है तो शर्त कहां पूरी हो रही है ? और दूसरा मूछित है यह पता भी हमें तभी चल सकता है जब हम जागृत हों । लेकिन पता ही नहीं चलता है कि आदमी सोया हुआ है । अब दस आदमी कमरे में सोए हुए हैं तो सिर्फ जागे हुए आदमी को ही पता चल सकता है कि बाकी लोग सोए हुए हैं । सोए हुए को पता नहीं चल सकता कि कोन सोया हुआ है और जागृत व्यक्ति को कैसी विनम्रता, कैसा अविनय, यह सवाल ही नहीं है । पर ध्यान उनका यही है कि मूछित को सम्मान कम हो, अमूछित को सम्मान हो ताकि समाज अमूर्जा की ओर बढ़े और व्यक्ति अमूछित दिशा को तरफ अग्रसर हो । साधु के लिए सम्मान का बड़ा ध्यान उन्होंने किया है सिर्फ इसीलिए कि साधु वह है जो सम्मान नहीं मांगता। जो समाज ऐसे व्यक्तियों को सम्मान देता है, वह समाज धीरे-धीरे निरहंकारिता की ओर बढ़ने का कदम उठा रहा है।