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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१९
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प्रश्न : यह कया है या फिर वास्तव में बातचीत हुई है इन्द्र और महावीर में?
उत्तर : नहीं, यह बिल्कुल कथा है ।
प्रश्न : तो फिर इसका उल्लेख क्यों आया है कि महावीर ने इन्द्र से बातचीत की।
उत्तर : हम कहानियां हो समझ पाते हैं और वह भी तब जब वे ऐतिहासिक है, ऐसा कहा जाए। अगर कोई कहानी ऐतिहासिक नहीं तो हम कहेंगे कि बस यह कहानी है । फिर हम उसे समझ ही नहीं पाएंगे।
मैं एक शिविर में एक पहाड़ पर था। एक दिन की बात है। पर्वत के एक शिखिर पर सूर्यास्त देखने की इच्छा हुई। बड़ी धूप थी। सूर्य ढल रहा था। दो बहनें मेरे साथ थीं। एक बेंच पर उन्होंने बिठा दिया मुझे। फिर उन्हें चिता हुई कि बहुत धूप में वे मुझे लाई हैं। दोनों मेरे सामने आकर खड़ी हो गई
और कहा कि हम आपके लिए छाया बनी जाती है । मैंने कहा ठीक, मगर एक दिन यह बात ऐतिहासिक तथ्य बन जाएगी कि मैं धूप में था और दो बहनें मेरे लिए छतरी बन गई। वे मेरे लिए छाया बन गई। उन्होंने धूप झेलो और मैं छाया में बैठा रहा। लेकिन कभी यह उपद्रव की बात हो सकती है कि दो स्त्रियाँ छतरी बन गई थीं।
तो हम काव्य को नहीं समझ पाते । बड़ी जड़ता से हम वोजों को पकड़ते है। जो भी अद्भुत व्यक्ति पैदा होता है वह इतना अदा होता है कि उसके मास-पास काव्य बन जाता है, कथाएं बन जाती हैं। कथाएं सच है, ऐसा नहीं है । व्यक्ति ऐसा था कि उसके आस-पास कथाएं पैदा होंगी। उसके व्यक्तित्व से ढेर काव्य पैदा होंगे। लेकिन बहुत जल्दी काव्य नहीं रह जाएगा और जब हम उसे जोर से पकड़ लेंगे तब कविता मर जाएगी और तथ्य निकालने की चेष्टा शुरू हो जाएगी। वहीं जाकर जीवन झूठे हो जाते हैं । महावीर का, बुद्ध का, मुहम्मद का, जीसस का-सारा जीवन झूठा हो गया। झूठा होने का कुल कारण इतना है कि जो काव्य था, जो कविता थी और बड़े प्रेम में कही गई थी वह मर गई । और बहुत बार ऐसा होता है।
इतनी अनूठी हैं जीवन की घटनाएं कि उन्हें शायद तथ्यों में कहा हो नहीं जा सकता । उनके साथ हमें काव्य जोड़ना ही पड़ता है। और जब हम काव्य जोड़ते हैं तभी कठिनाई हो जाती है । जैसा मैंने कहा अभी । मुहम्मद के संबंध
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