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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-२०
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जा रहा है। जितनी बुद्धिमत्ता और विवेक बढ़ रहा है उतना आदमी निष्पक्ष होता चला जा रहा है। सम्प्रदाय जाएगा, वाद जाएगा। आज नहीं कल, ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है। जिस दिन 'वाद' चला जाएगा उस दिन हो सकता है कि आज जो नाम बहुत महत्त्वपूर्ण मालूम पड़ते हैं, कम महत्त्वपूर्ण हो जाएं और जो नाम आज तक एकदम ही गैर महत्व का मालूम पड़ रहा है वह एकदम पुनः महत्त्व स्थापित कर ले। लेकिन जैन अगर महावीर के पीछे इसी तरह पड़े रहे तो महावोर के विचार की क्रान्ति सब लोगों तक कभी नहीं पहुँच सकती।
प्रश्न : आन्तरिक जीवन में असुरक्षा का भाव कठिन है लेकिन व्यावहारिक जीवन में असुरक्षा का भाव कैसे प्रारम्भ किया जा सकता है ? यानी यह जो बाह्य जीवन है इसमें असुरक्षा का भाव कैसे प्रारम्भ कर सकते हैं ?
उत्तर : असल में सवाल बाहर और भीतर का नहीं है । सवाल इस सत्य को जानने का है कि हम क्या असुरक्षित हैं या सुरक्षित हैं, बाहर या भीतर या कहीं भी । सम्बन्ध सुरक्षित हैं ? नहीं। कल जो अपना था, वह आज भो अपना होगा ? नहीं। जो आज अपना है, वह कल सुबह अपना होगा ? नहीं । सम्मान सुरक्षित है ? नहीं । कल जिसके पीछे भीड़ थी, आज वह आदमी जिन्दा है या मर गया इसका भी कोई पता नहीं चल रहा। कौन सी चीज सुरक्षित है ? कोई भी नहीं । तो असुरक्षा इस सत्य का बोध है कि जीवन असुरक्षित है । न जन्म का भरोसा, न जीवन का भरोसा, न शरीर का भरोसा, किसी भो चीज का कोई भरोसा नहीं है । इस सत्य का बोध और इस सत्य के बोध के साप जोना, भीतर और बाहर दोनों तलों पर।
__ मैं यह नहीं कहता हूँ कि एक आदमी मकान न बनाए । लेकिन मैं यह कहता हूँ कि मकान बनाते वक्त भी जान ले कि असुरक्षा खत्म नहीं होती। असुरक्षा अपनी जगह खड़ी है । मकान रहे तो भी, मकान न रहे तो भी । ज्यादा से ज्यादा जो फर्क पड़ता है, वह इतना कि जिसके पास मकान नहीं है, उसे असुरक्षा प्रतीत होती है, और जिसके पास मकान है, उसे असुरक्षा प्रतीत नहीं होती लेकिन वह खड़ी अपनी जगह है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। ___ गरीब भी असुरक्षित है, अमीर भी। लेकिन अमोर को सुरक्षा का भ्रम पैदा होता है । यह मैं नहीं कहता हूँ कि परिवार न बसाएँ, विवाह न करें, मित्र न बनाएं। यह मैं नहीं कहता हूँ। यह जानते हुए कि सब असुरक्षित है आपको