________________
महावीर : मेरो दृष्टि में
3, झूठ है । वह साफ कह देता है और वह बिल्कुल पक्का है। उसने हाथी को सूर्प को तरह जाना है और बात खत्म हो गई है । लेकिन एक आदमी है जो कहता है : हाथी सूप की तरह भो है, हाथी सूप की तरह नहीं भी है; हाथी खम्भे की तरह भी है, हाथी खम्भे की तरह नहीं भी है। जो सब दृष्टियों में कहता है कि ऐसा भी है, ऐसा नहीं भी है । मेरे पिता हैं । मुझे निरन्तर बचपन में उनसे बड़ी परेशानी भी रही । मेरी समझ के हो बाहर था यह । मेरे घर में सब तरह के लोग थे । नास्तिक भी थे घर में । कोई कम्युनिस्ट भी था, कोई सोशलिस्ट भी था, कोई कांग्रेसी भी था, बड़ा परिवार भी था । उसमें सब तरह के लोग थे । घर पूरी की पूरी एक तरह की जमात थी जिसमें अपनी-अपनी दृष्टि पर पक्के लोग थे, और जिसको ठीक समझते थे ठीक हो समझते थे, जिसको गलत समझते थे, गलत हो समझते थे । इसमें कोई समझोते का उपाय भी न था । और मैं बहुत हैरान था कि अगर मेरे पिता को जाकर कोई कहे कि ईश्वर नहीं है तो वह कहते कि ठीक कहते हैं । अगर कोई कहे कि ईश्वर है वह कहते कि ठीक कहते हैं । यह मैंने बहुत बार सुना उनके मुख से । सब तरह की बात में स्वीकृति देखी । मैंने उनसे पूछा कि यह बात क्या है ? आप सब बातों को स्वीकार कर लेते हैं यह तो बड़ी मुश्किल बात है । सब ठोक कैसे हो सकती है । उन्होंने कहा कि सत्य बहुत बड़ा है, इतना बड़ा कि वह सबको समा लेता है । उसमें आस्तिक भी समा जाता है, नास्तिक भी । और सत्य अगर इतना छोटा है कि उसमें सिर्फ आस्तिक समाता है तो ऐसे सत्य की कोई जरूरत नहीं ।
असत्य बहुत छोटा है, अत्यन्त संकीर्ण है । और सत्य संकीर्ण नहीं हो सकता है । सत्य होगा विराट् । उसमें सब समा जाएंगे । इसलिए सबके लिए 'हाँ' कहा जा सकता है । और कोई चाहे तो सब के लिए 'न' भी कह सकता है । 'न' इसलिए कह सकता है कि कोई भी सत्य पूरे को नहीं घेरेगा । और 'हाँ' इसलिए कह सकता है कि कोई भी सत्य पूरे सत्य का हिस्सा होगा । तो इसलिए जो जानता है वह बड़ी मुश्किल में पड़ जाएगा कि वह क्या कहे, 'हाँ' कहे या 'न' कहे या दोनों कहे, या चुप रह जाए । तो महावीर साफ नहीं मालूम बढ़ते । हर किसी बात में 'हाँ' कहते हैं, हर किसी बात में 'न' कहते हैं । इसका मतलब है कि या तो इन्हें पता नहीं या पता है तो साफ-साफ पता नहीं ।