________________
११२
महावीर : मेरी दृष्टि में
सकेगा तो वह चावल कूटने वाला, जो बारह साल से लोटा नहीं, चावल ही कूट रहा है । और, जिसने शिकायत भी नहीं की एक बार की गुरु अब तक नहीं आया; अब मर जाएंगे तब आएगा । मैं जानता था कि उसको मिल ही गया है, इसलिए नहीं लौटा। उसने कहा कि सब मिल गया था इसलिए आपके आने की जरूरत भी न थी क्योंकि चावल कूटता रहा, कूटता रहा । कुछ दिन तक विचार चले पुराने क्योंकि नए विचारों का कोई उपाय हो न था । न किसी से बात करता, न कुछ पढ़ना । चावल ही कूटता । और चावल कूटने से विचार कहीं पैदा होते हैं ? धीरे-धीरे सव विचार मर गए। चावल कूटना ही रह गया । जब सब विचार मर गए और सिर्फ चावल कूटना रह गया तो मैं इतनी तेजी से जागा जिसका कोई हिसाब नहीं । सारी चेतना मुक्त हो गई ।
यह जो खो गया शिक्षक है, वह करुणावश कुछ रास्ते ऐसे छोड़ जाता है पीछे । लेकिन सभी चीजें क्षीण हो जाती हैं। सभी सम्पर्क सूत्र शिथिल पड़ जाते हैं और खो जाते हैं ।
1
प्रश्न : आपने जो बातें कहीं, उनमें से कुछ विचित्र भी लगीं । आपने उपवास की जो तुलना की- भोजन कर लिया पर भोजन न करने के समान; विवाह कर लिया पर विवाह न करने के समान -इतने तक समझ में आया । पर सन्तान उत्पन्न कर दी और सन्तान उत्पत्ति न करने के समान; मैथुन किया पर न करने के समान - यह प्रक्रिया तो ऐसी नजर छाती है कि बिना वासना और तृष्णा के हो ही न पाए ।
उत्तर : बगर भोजन की बात समझ में आती है तो मैथुन की क्यों नहीं ? यदि भोजन द्रष्टा ज्ञाता के रूप में किया जा सकता है तो मैथुन क्यों नहीं ? अगर किसी भी क्रिया को करते समय पीछे साक्षो खड़ा है ओर देख रहा है तो कोई भी क्रिया बंधनकारी नहीं होती । भोजन करते समय अगर साखी पोछे देख रहा है कि भोजन किया जा रहा है ओर में अलग खड़ा हूँ तो भोजन सिर्फ शरीर में जा रहा है । पीछे अछूता कोई बड़ा है जिसको कुछ भी नहीं छू सकता, जो सिर्फ देख रहा है, जो सिर्फ द्रष्टा है भोजन किए जाने का । अब ध्यान रखिए भोजन शरीर में जा रहा है और मैथुन में शरीर से कुछ बाहर जा रहा है । उसका भी साक्षी हुआ जा सकता है । साक्षी तो किसी भी क्रिया का हुआ जा सकता है, चाहे वह अन्तर्गामी हो चाहे बहिर्गामी । असल में जो भोजन शरीर में जा रहा है, वही मैथुन में शरीर से बाहर जा रहा है। भोजन में क्या जा रहा है भीतर ? उसी का सारभूत फिर मैथुन से बाहर जा रहा है। लेकिन यह