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महावीर : मेरी दृष्टि में
जाती है। जैसे जापान में जेन शृङ्खला चलती है । उसमें अभी भी एक प्रतिभाशाली आदमी या सुजूकी । लेकिन वह मर गया। उसने बड़ी कोशिश की कि वह गति दे दे लेकिन वह गति नहीं हो पाई। और फिर होता क्या है ? जब कोई महापुरुष एक शृङ्खला को जन्म दे जाता है अगर उसके बाद छोटे-छोटे लोग इकट्ठे हो जाएँ और वे उसके दावेदार हो जाएँ वो दोहरा नुकसान पहुंचता है । एक तो वे कुछ चला नहीं सकते और दूसरा जब कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति उस शृङ्खला में पैदा भी हो जाए तो उसे उस शृङ्खला के बाहर कर देते हैं। वह नासमझों की भीड़ उसे एकदम बाहर कर देती है ।
असल में जीसस यहूदी शृङ्खला का हिस्सा हो सकता था। लेकिन यहूदी भीड़ जीसस को बर्दाश्त न कर सकी। उस भीड़ ने बाहर कर दिया उसको। यहूदियों का बेटा यहूदियों के बाहर हो गया और ईसाइयत शुरू हो गई । अब ईसाइयत के बीच जो भी कीमती आदमी पैदा होता है, ईसाइयत उसको बाहर कर देती है फौरन । होता क्या है कि वह जो नासमझों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है, वह फिर किसी प्रतिभा को बर्दाश्त नहीं कर सकती। और जो प्रतिभा श्रृंखला को जिन्दा रख सकती है, उसको वह बाहर कर देती है। तब नई मङ्खलाएं शुरू हो जाती हैं। दुनिया में सिर्फ कोई पचास शृंखलाएँ चली है, थोड़ी-बहुत चलीं, टूट गई और मिट गई। मेरा कहना है कि दुनिया को जितना आध्यात्मिक लाभ पहुंच सकता था इन सबसे वह नहीं पहुंच पाया। और बब हमें चाहिए कि हम सारी व्यवस्था तोड़ दें सम्प्रदाय की ताकि प्रतिभा को बाहर निकालने का उपाय ही न रह जाए कहीं से भी। जैसे थियोसाफी को भङ्खला थी बड़ी कीमती। उसे ब्लेवटस्को ने शुरू किया और वह कृष्णमूर्ति तक आई। लेकिन कृष्णमूर्ति इतने साहसो साबित हुए कि थियोसोफिस्ट बर्दाश्त नहीं कर सके । थियोसोफिस्टों ने कृष्णमूर्ति को बाहर कर दिया। पियोसोफिस्ट शृंखला मर गई। वह मर गई इसलिए कि जो कीमती आदमी उसे गति दे सकता था उसको तो बाहर निकाल दिया।
जब तक दुनिया से सम्प्रदाय मिट न जाएं, सीमाएं मिट न जाएँ, तब तक विस्फोट छू नहीं पाता। जैसे इस मकान में आग लगी तो पड़ोस के मकान में इसलिए आग लग सकती है कि वह उससे जुड़ा हुआ है। अगर बीच में एक गली है तो माग नहीं लग सकती। अब अगर रमण पैदा भी हो जाएं तो ईसाइयत से उनका कोई सम्बन्ध नहीं जुड़ता क्योंकि मकान अलग-अलग हैं । तो पहला बहुत दफा पैदा होती है। लेकिन वे जो अलग-अलग टुकड़े बनाकर