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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१५
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सभी साधना-पद्धतियों का प्रयोग किया और वे इस नतीजे पर पहुंचे कि सब रास्ते अलग हैं किन्तु पहाड़ की चोटी पर सब एक हो जाते हैं । लेकिन उनके पास कोई उपाय नहीं था कि वह कह सकते । फिर उन्होंने वही साधना-पद्धति अपनाई जो बंगाल में उन्हें उपलब्ध थी। सारे जगत् के बाबत उनका विचार विस्तीर्ण नहीं था। ___ मैं एक प्रयोग करना चाहता हूँ कि सारो दुनिया में अब तक जो किया गया है परम जीवन को पाने का, उसकी सार्थकता को एक साथ इकट्ठा ले आऊँ। निश्चित ही मैं कोई सम्प्रदाय नहीं बनाना चाहता। लेकिन मैं चाहता हूँ कि सम्प्रदाय मिट जाएँ । मैं अनुयायी भी नहीं बना सकता क्योंकि मैं चाहता हूँ कि अनुयायो हो ही नहीं। मेरी चाह यह है कि मनुष्य ने जो अब तक खोजा है वह एकदम निकट आ जाए । इसलिए मेरी बातों में बहुत बार विरोधाभास मिलेगा। क्योंकि जब मैं किसी मार्ग की बात कर रहा होता हूँ तो मैं उसी मार्ग की बात कर रहा होता हूँ। जब दूसरे मार्ग को बात कर रहा होता हूँ तो उस मार्ग की बात कर रहा होता है। और इन दोनों मार्गों पर अलग-अलग वृक्ष मिलते हैं, अलग-अलग चौराहे मिलते हैं। इन दोनों मार्गों पर अलग-अलग मन्दिर का आभास है। इन दोनों मार्गों पर अलग-अलग रास्ते को अनुभूतियाँ हैं : मगर परम अनुभूति समान है। वह तो मैं जिन्दगी भर बोलता रहूंगा, धीरे-धीरे जब तुम्हें सब साफ हो जाएगा कि मैं हजार रास्तों की बातें कर रहा हूं तब तुम्हें ख्याल में आएगा और फिर तुम्हें जो ठोक रास्ता लगे चलना। लेकिन एक फर्क पड़ेगा।
मेरी बात समझकर जो गति करेगा वह किसी भी रास्ते पर जाए तो वह उसे अनुकूल होगा। वह दूसरे मार्ग की दुश्मनी की बात नहीं करेगा। वह इतना ही कहेगा कि मेरे लिए अनुकूल है यही रास्ता। तब हो सकता है कि पति सूफियों को मानता हो, पत्नी मीरा के रास्ते पर जाती हो, बेटा हिन्दू हो, जैन हो या बौद्ध हो । तब एक परम स्वतन्त्रता होगी रास्तों की। और हर घर में रास्तों के बाबत थोड़ा-सा परिचय होगा ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए रास्ता चुन सके कि उसके लिए क्या उचित हो सकता है। अभी कठिनाई यह है कि एक आदमी जैन घराने में पैदा हो जाता है । और हो सकता है कि उसके लिए महावीर का रास्ता अनुकूल न हो। मगर वह कभी कृष्ण के रास्ते पर नहीं जाएगा जो कि उसके लिए अनुकूल हो सकता था। एक आदमी कृष्ण को मानने वाले घर में पैदा हो गया तो वह महावीर के बारे में कभी सोचेगा ही