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महावीर : मेरी दृष्टि में
छूकर
से दिखाई भी पड़ता है । परमात्मा तो यहां से दिखाई भी नहीं वड़ता । उसकी खबर मिलने का तो कोई सवाल ही नही । लेकिन कभी कोई उसको ਚੀਟ आए तो खबर दे सकता है। तीर्थंकर का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो छूकर लोट आया है शायद खबर देने ही; जो उसे मिला उसे बांटने, जो उसने पाया उसे बताने | जैनों ने अवतरण की बात नहीं की । क्योंकि ईश्वर की धारणा उन्होंने स्वीकार नहीं की । इसलिए एक ही रास्ता था कि जो व्यक्ति गया हो उस किनारे तक वह वापस लौटकर खबर देने आ गया हो ।
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ईसाई हैं । वे न तीर्थंकर की कोई धारणा करते हैं, न अवतार की । वे तो सीधे ईश्वरपुत्र की धारणा करते हैं-- ईश्वर के बेटे की । क्योंकि ईश्वर के सम्बन्ध में जो खबर देता हो वह ईश्वर के इतना निकट होना चाहिए जितना की बाप के निकट वेटा हो । बेटे का और कोई मतलब नहीं है । उसका मतलब इतना है कि जो उसके प्राणों का हिस्सा हो, उसका हो खून बहता हो जिसमें, वही तो खबर देगा । जगत् में इस तरह की अन्य धारणाएँ हैं । लेकिन उन सब में एक बात सुनिश्चित है और वह यह कि जो जानता है, वही जना भी सकता है। जिसने जाना है, पहचाना है, देखा है, जिया है, वही खबर भी दे सकता है | उसकी खबर कुछ अर्थ भी रखती है ।
मुक्त व्यक्ति एक बार लौट सकता है। महावीर के अब लौटने का कोई सवाल नहीं है । महावीर लौट चुके हैं। लेकिन बुद्ध के लौटने का सवाल अभी बाकी है । बुद्ध के एक अवतरण की बात है । मैत्रेय के नाम से कभी भविष्य में उनका एक अवतरण होगा। क्योंकि बुद्ध को जो सत्य की उपलब्धि हुई है, वह इसी जीवन में हुई है । इसके पहले जीवन में नहीं । बुद्ध ने जो पाया है इसी जीवन में पाया है। एक जीवन का उन्हें उपाय और मोका है और बहुत सदियों से, जब से बुद्ध गए तब से उनको प्रेम करने वाले, उन्हें जानने वाले प्रतीक्षा करते हैं उस अवसर की जब कि बुद्ध अवतरित होंगे । बुद्ध के आने की एक बार उम्मीद है । जीसस की भी एक बार आने की उम्मीद है । जीसस को भी जो उपलब्धि हुई वह इसी जन्म में हुई । दुबारा जन्म हो सकता है । लेकिन एक ही लिया जा सकता है और प्रतीक्षा भी हो सकती है ।
फिर हमें ऐसा कठिन मालूम पड़ता है कि बुद्ध को मरे पच्चीस सौ वर्ष होते हैं । जीसस को मरे भी दो हजार वर्ष होते हैं । तो दो हजार वर्ष तक वह जन्म नहीं हुआ । हमारी समय की जो धारणा है उसकी वजह से हमको ऐसी कठिनाई है । तो थोड़ी-सी समय की धारणा भी समझ लेनी जरूरी है । आप रात