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महावीर : मेरी दृष्टि में
पास गये और कहा कि एपीटेक्टस, अब तो भो । करीब आती है, तुम बूढ़े हो गए। तो उसने कहा : जरूर आए, देखेंगे। जब सब चीजें देखने की ताकत आ गई तो मौत को देखने की ताकत भी आ गई। जो जिन्दगी को नहीं देख पाते, वे मौत को भी नहीं देख पाते। जो जिन्दगी को देख लेता है वह मौत को भी देख लेता है । लेकिन एपीटेक्ट रा ने कहा, देखेंगे। बड़ा मजा आयेगा, क्योंकि बड़े दिन हो गए, मौत को नहीं देखा।
__ मौत आ है। बहत से लोग इकट्ठा हो गये है। एपीटेक्टस मर रहा है लेकिन घर में संगीत हो रहा है क्योंकि उसने अपन मित्रों और शिष्यों को कहा है कि मरते क्षण में मझे रोकर बिदा मा देना क्योंकि रोकर हम उनको विदा देते हैं जो जानता नहीं था। मझे नम हंसकर विदा देना क्योंकि मैं जानता है, नि: मैं मर नहीं रहा है। मैंने देखना सीख लिया है, हर स्थिति को देखना सीख लिया है और जिस स्थिति को मैंने देखना सीखमैं उसके बाहर हो गया उसी वक्त । अगर मैंने द:ख को देखः, रख के बाहर हो गया। अगर मैंने सुख को देखा, मैं सुख के बाहर हो गया। अगर मैंने जीवन को देखा तो मैं जीवन के बाहर हो गया । तो तुममे मैं कहता है कि मैं देखने को कला जानता है। मैं मौल को देख लेगा और मो के बाहर हो जाऊँगा। तुम इसको फिक्र ही मत करो, मैंने जिस चीज को देखा मैं उसके बाहर हो गया। यह मेरे जीवन भर का अनुभव है कि देखो और बाहर हो जाओ। मगर हम देख ही नहीं पाते ।
इगलिा. इस देखने के तत्त्व-विचार को 'दर्शन' का नाम दिया है। दर्शन का मतलब है देखने की क्षमता । पश्चिम में जो दर्शन है उसे मीमांसा कहना चाहिए, तत्त विचार कहना चाहिए । भारत में जिस हम दर्शन कहते हैं --महावीर, बुद्ध, पतञ्जलि, कपिर. कणाद का दर्शन, वर, पश्चिम का दर्शन नहीं है । भारत का दर्शन है देखने की कला : देख लो और बाहर हो जाओ। सोचने का सवाल नहीं है यहाँ । और जिस चीज को आप देखोगे उसी के बाहर हो जाओगे । यह कभी सोचा आपने कि निग चीन को आप देखने में समर्थ हो जाते हैं, आप तत्काल उसके बाहर हो जाते हैं। हम यहाँ इतने लोग बैठे हैं और अगर ल्याप गौर से देखेंगे, आप फौरन बाहर हो जाएंगे। आप इतने लोगों को गौर से देखेंगे और आप पाएंगे कि भीड़ नहा रहो । आप अकेले रह गए। कभी कितनी हैं। भीड़ में आप खड़े हो और गौर से चारों तरफ देखें और जग जाएं तो आ पाएंगे कि भीड चली गई, आप अकेले ही रह गए; भीड़ है पर आप बिल्कुल अगे रह गए हैं। जिस चीज को आप देखने की क्षमता जुटा