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महावीर : मेरी दृष्टि में
पहलू हैं । जो व्यक्ति एक क्षण भी वासना के बाहर हो जाए, वह अन्तरिक्ष में यात्रा कर गया — उस अन्तरिक्ष में, जो हमारे भीतर है । वह जीवन के चक्र के बाहर छलांग लगा गया। क्योंकि उसने कहा कि न मुझे यश चाहिए, न धन चाहिए, न कोई काम चाहिए, मुझे कुछ चाहिए ही नहीं ? मैं जो हूँ, हूँ । मैं कुछ होना नहीं चाहता । वासना का मतलब है कि मैं जैसा है वैसा नही, जो मेरे पास है वह काफी नहीं, कुछ और चाहिए। छोटा क्लर्क बड़ा होना चाह रहा है, छोटा मास्टर बड़ा मास्टर होना चाह रहा है। छोटा मिनिस्टर बड़ा मिनिस्टर होना चाह रहा है ।
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तो सारे खोजियों की खोज यह है कि एक क्षण के लिए भी वासनाओं के बाहर ठहर जाओ और वह क्षेत्र जो चक्कर लगवाता था, उसके आप बाहर हो जाओगे । और एक क्षण भी आप बाहर हो गए तो आप हैरान हो जाओगे यह जानकर कि जिसे हम अनन्त जन्मों से पाने की आकांक्षा कर रहे हैं वह हमारे पास ही था, वह मिला ही हुआ था । वह हमें उपलब्ध ही था । अपने तरफ देखने भर की जरूरत थी । लेकिन जैसे अन्तरिक्षयात्रा नहीं हो सकती जब तक कि जमीन की कोशिश से छूट न जाएँ, वैसे हो अन्तर्यात्रा नहीं हो सकती जब तक हम वासना की कोशिश से छूट न जाएं। और वासना की कशिश जमीन की कशिश से ज्यादा मजबूत है । क्योंकि जमीन की जो कशिश है वह एक जड़ शक्ति है खींचने की । वासना की जो कशिश है वह एक सजग चेतनशक्ति है खींचने की ।
आप रास्ते पर चलते हैं, आपको कभी पता नहीं चलता कि जमीन आपको खींच रही है । यह जब पता चले तब हम कशिश से बाहर हो जाएँ । अभी अन्तरिक्ष में जो यात्री गए उनको पता चला कि यह तो बड़ा मुश्किल मामला है । एक सैकेंड भी कुर्सी पर बिना बेल्ट बांधे नहीं बैठा जा सकता । बेल्ट छूटा कि आदमी उठा, छप्पर से लग गया एकदम । और उनको पहली दफा जाकर पता लगा कि वजन जैसी कोई चीज ही नहीं है। जमीन की कशिश है, जमोन का खिचाव है | चूँकी चाँद पर जमीन की कशिश बहुत कम है, इसलिए कोई भी आदमी छलांग लगाकर ऊँची दीवार से निकल सकता है। चांद की कशिश आठ गुनी कम है । जो आदमी जमीन पर आठ फीट छलांग लगा सकता है वह वहाँ आठ गुनी छलांग लगा सकेगा क्योंकि उसका वजन कम हो गया है । लेकिन हमें पता ही नहीं है कि हमें पूरे वक्त, जमोन खींचे हुए है क्योंकि हम उसी में पैदा होते हैं, उसी में पड़े होते हैं और उसी में हम निर्धारित हो जाते हैं । हमको