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महावीर : मेरी दृष्टि में
होंगे । वक्त लगेगा पहचानने में और शायद हम ठीक से पहचान भी न सकें जब तक हमारे भीतर फर्क होना शुरू न हो जाए ।
यह कुछ अद्भुत सी बात है लेकिन दो विरोधी अतियाँ कभी-कभी बिल्कुल समान ही मालूम होती हैं । जैसे एक बच्चा है. वह सरल मालूम होता है, निर्दोष मालूम होता है । लेकिन अज्ञानी है, ज्ञान विल्कुल नहीं । परम ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति भी बच्चे जैसा मालूम होने लगेगा । इतना ही सरल, इतना ही निर्दोष । शायद बच्चे जैसा व्यवहार भी करने लगेगा ! शायद हमें
तय करना मुश्किल हो जाएगा कि इस आदमी ने बुद्धि खो दी,
यह कैसा बच्चों जैसा व्यवहार कर रहा है, कैसी बालबुद्धि का हो गया है। लेकिन दोनों में बुनियादी फर्क है । बच्चा अभी निर्दोष दिखता है लेकिन कल निर्दोषता खोएगा; अभी सरल दिखता है लेकिन कल जटिल होगा । यह आदमी जटिल हो चुका है । निर्दोषता खो चुका है । वह पूर्ण उपलब्धि है कि सरलता लौट आई है, फिर निर्दोष हो गया है । अब खोने का सवाल नहीं है यह जानकर, जी कर लौट आया है । यह उन अनुभवों से गुजर गया है जिनसे बच्चे को गुजरना पड़ेगा । बच्चे की सरलता अज्ञात की है। एक सन्त की सरलता ज्ञान की है । लेकिन दोनों सरलताएँ अक्सर एक सी मालूम पड़ेंगी। एक सन्त भी बच्चों जैसा सरल हो सकता है । और अगर सन्त बच्चों जैसा सरल न हो सके तो अभी वृत्त पूरा नहीं हुआ, अभी बात वापस नहीं लोटी, जटिलता शेष रह गई, कठिनाई शेष रह गई है । कहीं कोई चालाकी शेष रह गई है । इसीलिए कभीकभी बहुत भूलें हो जाती हैं ।
मैं फकीर नसरुद्दीन की निरन्तर बात करता हूँ। वह ऐसा ही आदमी था जो देखने में परम जड़ मालूम पड़े, जिसका व्यवहार परम जड़ का हो, लेकिन जो देख सके उसे वहीं परम ज्ञान दिख जाए। एक बात मैं बताना चाहूँगा । फकीर नसरूद्दीन एक रास्ते से गुजर रहा है। उसने देखा कि एक व्यक्ति तोता बेच रहा है और जोर से चिल्ला कर कह रहा है कि बड़ा कीमती तोता है यह, बड़े सम्राट् के घर का तोता है, इस इस तरह की वाणियाँ जानता है, इस इस भाषा को पहचानता है, इस इस भाषा को बोलता है । और सैकड़ों लोग इकट्ठे हुए हैं । नसरूद्दीन भी उस भीड़ में खड़ा हो गया है । कई सौ रुपए में वह तोता नीलाम हुआ और बिक गया । नसरूद्दीन ने लोगों से कहा कि ठहरो, मैं इससे भी बढ़िया तोता लेकर अभी आता हूँ । भागा हुआ घर आया और अपने तोते के पिंजरे को लेकर बाजार में खड़ा कर दिया और कहा वह क्या तोता