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प्रश्न : आपने कहा कि महावीर की आत्मा मुक्त होकर भी वापिस आ गयो यी-पया इसे स्पष्ट करें। क्या मुक्त प्रात्मा घूम कर पि.र निगोद अवस्था में नहीं पहुंच जातो ?
उत्तर : महायान में एक बहुत मधुर कथा का उल्लेख है। बुद्ध का निर्वाण हुआ। वह मोक्ष के द्वार पर पहुँच गए । द्वारपाल ने द्वार खोल दिया। बुद्ध को कहा : स्वागत है आप भीतर आएं। लेकिन बुद्ध उस द्वार को ओर पीठ करके खड़े हो गए। और उन्होंने द्वारसाल से कहा : जब तक पृथ्वी पर एक व्यक्ति भी अमुक्त है, तब तक मैं भोतर कैसे आ जाऊँ । अशोभन है यह । लोग क्या कहेंगे? अभी पृथ्वी पर बहुत लोग बंधे हैं, दुःखी है, और वुद्ध आनन्द में प्रवेश कर गए ! तो.मैं रुकूगा। मैं इस द्वार से सभी के बाद ही प्रवेश कर सकता है।
यह कहानी महायान बौद्धों में प्रचलित है। इसका अर्थ यह है कि एक व्यक्ति मुक्त भी हो सकता है, लेकिन मुक्त हो जाना ही मोक्ष में प्रवेश नहीं है । इस बात को समझ लेना जरूरी है कि मुक्त होना मोत का प्रवेश-द्वार है । मुक्त होकर ही कोई व्यक्ति मोक्ष में प्रवेश पा सकता है, मुक्त हुए बिना प्रवेश नहीं पा सकता है। लेकिन मुक्त हो जाना ही प्रवेश नहीं है। ठेठ द्वार पर भी खड़े होकर कोई वापिस लौट सकता है और जैसा कि मैंने पीछे कहा कि एक बार वापिस लौटने का उपाय है। वह मैंने पीछे समझाया भी कि क्यों ऐसा उपाय है । जो उपलब्ध हुआ है वह अगर अभिव्यक्त नहीं हो पाया, जो पाया है अगर वह बांटा नहीं जा सका, जो मिला है अगर वह दिया नहीं जा सका तो एक