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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१६
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वह इतने बड़े व्यंग भी कर रहा है और इतनी सरलता से कि किसी के ख्याल में आए तो उसके प्राणों में घुस जाए, न आए तो वह आदमी बुद्ध है । बहुत बार ऐसा हो सकता है कि हमें पकड़ में ही न आए कि क्या बात है। लेकिन हमें पकड़ में तभी आएगा जब हमारी समझ उतनी गहराई पर खड़ी हो।
प्रश्न : क्या महावीर को अहिंसा पूर्ण विकसित है ? क्या महावीर के बाद अहिंसा का उत्तरोत्तर विकास नहीं हुआ है ? क्या गीता और बाइबिल में महावीर से भी अधिक सूक्ष्म रूप हैं ?
उत्तर : पहली बात यह है कि कुछ ऐसी चीजें हैं जो कभी विकसित नहीं होती । विकसित हो ही नहीं सकतीं। वे चीजें हैं जहाँ हमारा विचार, हमारा मस्तिष्क, हमारी बुद्धि, सब शांत हो जाते हैं। और वे तब हमारे अनुभव में आती है। जैसे कोई कहे कि बुद्ध को ज्ञान उपलब्ध हुए पचीस सौ साल हो गए । अब जिन लोगों को ज्ञान उपलब्ध हुआ है वह आगे विकसित होता है या नहीं? महावीर के बाद आज तक की अवधि में लोग विकसित हो गए हैं तो ध्यान आगे विकसित होगा या नहीं, ध्यान है स्वयं में उतर जाना। स्वयं में कोई चाहे लाख साल पहले उतरा हो और चाहे अब उतर जाए। स्वयं में उतरने का अनुभव एक है, स्वयं में उतरने की स्थिति एक है । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
महावीर को जो अहिंसा प्रकट हुई वह उनकी स्वानुभूति का ही बाह्य परिणाम है। भीतर उन्होंने जाना जीवन की एकता को और बाहर उनके व्यवहार में जीवन को एकता अहिंसा के रूप में प्रतिफलित हुई। अहिंसा का मतलब है जीवन की एकता का सिद्धान्त, इस बात का सिद्धान्त कि जो जीवन मेरे भीतर है, वही तुम्हारे भीतर है । तो मैं अपने को ही कैसे चोट पहुंचा सकता हूँ। मैं ही हूँ तुममें भी फैला हुआ। जिसे यह अनुभव हुआ हो कि मैं ही सब में फैला हुआ हूँ, या सब मुझसे ही जुड़े हुए जीवन है उसके व्यवहार में अहिंसा फलित होती है। इसमें क्राइस्ट को हो कि किसी और को हो, जीवन की एकता का यह अनुभव कम ज्यादा कैसे हो सकता है ? यह थोड़ा समझने जैसा है। __ अक्सर हम सोचते हैं कि सब चीजें कम ज्यादा हो सकती है। समझ लें कि आपने एक वृत्त ( सकिल ) खींचा। कभी आपने सोचा कि कोई वृत्त कम और कोई वृत्त ज्यादा हो सकता है ? हो सकता है कि जो वृत्त आपने खींचा है