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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १७
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कुछ वर्ष हुए एक मुसलमान वकील मुझे मिलने आए और उन्होंने मुझे कहा- कई महीनों से आना चाहता था लेकिन नहीं आया । चित्त अशान्त था । पूछना चाहता था आपसे कि कैसे शांत हो जाऊँ । लेकिन यह डर लगता था कि आप कहेंगे कि मांस खाना छोड़ो, चोरी करना छोड़ो, बेईमानी छोड़ो, शराब मत पिओ, जुआ मत खेलो - और ये सब मेरे पीछे लगे हैं । जब भी किसी साधु के पास गया उसने यही कहा कि यह सब छोड़ो तभी शांत हो सकते हो । ये मुझसे छूटते नहीं फिर मैंने साधुओं के पास जाना ही बंद कर दिया । इसलिए मैं आपके पास नहीं आया। फिर मैंने कहा । आज आप कैसे आए ? उसने कहा, आज किसी मित्र के घर खाना खाने गया था ! उन्होंने मुझसे कहा कि आप कहते हैं कि कुछ छोड़ो ही मत । तो मुझे लगा कि इस आदमी के पास जाना चाहिए | आप कुछ भी छोड़ने को नहीं कहते ; शराब पी सकता हूँ, जुआ भी खेल सकता हूँ । मैंने कहा मुझे तुम्हारे शराब और जुए से क्या मतलब | यह तुम्हारा काम है, तुम जानो । तो उसने कहा कि फिर आपसे मेरा मेल पड़ सकता है । फिर मैं क्या करूं ? अशांत हूँ, दुःखी हूँ। मैंने कहा कि आप ध्यान का छोटा-सा प्रयोग करें । आत्म-स्मरण का प्रयोग शुरू करें। आधा घंटा रोज बैठकर अकेले स्वयं ही रह जाएँ, सब भूल जाएं। उतनी देर मन में जुआ न खेलें । बाहर के जुए से मुझे कोई मतलब नहीं। उतनी देर मन में शराब न पिएं, बाहर की शराब में मुझे कोई मतलब नहीं । उतनी देर मांस न खाएँ, बस इतना बहुत है । उन्होंने कहा कि यह हो सकता है। आधा घंटा बचा सकता हूँ ।
फिर छः महीनों के बाद वह आदमी वापस आया। उसकी चाल बदल गई थी । वह आदमी बदल गया था । उसने मुझे आकर कहा कि आपने मुझे धोखा दिया । मैं क्यों आपको घोखा दूँ ? वह आधा घंटा तो ठीक था लेकिन मेरे साढ़े तेईस घंटे दिक्कत में पड़ जाते हैं । कल मैंने शराब पी और मुझे वमन हो गया उस वक्त । क्योंकि मेरा पूरा मन इन्कार कर रहा था। रिश्वत लेने में एकदम हाथ खिंच गए पीछे जैसे कोई जोर से कह रहा हो कि तुम क्या कर रहे हो ? क्योंकि उस आधा घंटा में जो शान्ति और आनन्द मुझे मिल रहा है, वह अब मैं चाहता हूँ कि चौबीस घंटे में फैल जाए। मैंने कहा वह तुम्हारा काम है ।
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छः महीने बाद वह आदमी दुबारा आया और उसने कहा कि जो आनन्द मैंने उस आधे घंटे में पाया वह सारे जीवन में नहीं पाया। अब मैं मांस नहीं खा सकता । अब मुझे तकलीफ होती है यह सोचकर कि मैं इतने दिन कितना