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प्रश्नोत्तर-प्रबचन- १७
तुमसे प्रेम है। प्रेम भी करे तो चुपचाप बैठकर प्रतीक्षा करती है कि तुम आओ और उससे कहो कि 'मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ ।' स्त्री आक्रामक नहीं है । स्त्रेण चित्त आक्रामक नहीं है । इससे स्त्री का ही सम्बन्ध नहीं है । बहुत पुरुष ऐसे हैं जो इसी भाँति प्रतिक्षा करेंगे। महावीर का कहना है-जैसा मैंने पीछे समझाया कि महावीर की पूरी साधना संकल्प की, श्रम की साधना है - कि जिसे सत्य पाना है उसे यात्रा पर निकलना होगा, उसे खोज में जाना होगा, उसे जुझना पड़ेगा, उसे चुनौती, साहस, संघर्ष में उतरना पड़ेगा । ऐसे बैठ कर सत्य नहीं मिल जाएगा ।
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तो महावीर कहते हैं कि स्त्री को भी अगर सत्य पाना है तो पुरुष होना पड़ेगा । इस बात को बहुत गलत समझा गया। ऐसा समझा गया कि स्त्री योनि से मोक्ष असम्भव है । स्त्री को भी एक जन्म लेना पड़ेगा पुरुष का, फिर पुरुषयोनि से मोक्ष हो सकेगा । बात बिल्कुल दूसरी है । पुरुषयोनि से ही मोक्ष हो सकता है महावीर के मार्ग पर । लेकिन पुरुष योनि का मतलब पुरुष हो जाना नहीं है शरीर से, पुरुष योनि का मतलब है निष्क्रयता छोड़ देना । एक स्त्री है। उसके मन को सहज यही लगता है कि वह कृष्ण का गीत गाए और कहे तुम्ही ले चलो जहाँ ले चलना हो। तुम्ही हो मार्ग, तुम्ही हो सहारे, मैं तो कुछ भी नहीं हूँ, तुम्हीं हो सब, अब जहाँ चाहो मुझे ले जाओ।' जितना भक्तिमार्ग है वह सब स्त्रेण की उत्पत्ति है - स्त्री की नहीं । जैसे प्रेयसी अपने प्रेमी के कन्धे पर हाथ रख ले, अपने प्रेमी के हाथ में हाथ दे दे और प्रेमी जहाँ ले जाए, वहीं चली जाए। स्त्रेण चित्त कह रहा है कि कोई ले जाए तो मैं जाऊँ, कोई पहुँचाए तो मैं पहुँचूँ, मैं समर्पण कर सकती हूँ । जैसे, एक लता है । वह सीधी खड़ी नहीं हो पाती। किसी वृक्ष का सहारा मिल जाए तो वह खड़ी हो सकती है । लता को वृक्ष का सहारा चाहिए, स्त्री सहारा मांगती है और महावीर सहारे के एक दम खिलाफ हैं। वह कहते हैं कि सहारा मांगा कि तुम परतन्त्र हुए । सहारा माँगो ही मत, बिल्कुल बेसहारा हो जाओ । तुमने सहारा माँगा कि तुम पंगु हुए। सहारा भगवान् का भी मत माँगना । सहारा माँगना हो दीन हो जाना है |
तो महावीर कहते हैं कि सहारा मांगना ही मत । यह अत्यन्त पुरुषमार्ग है । इस पुरुषमार्ग पर स्त्रेण चित्त की गति नहीं है। लेकिन शरीर से कोई स्त्री हो, किन्तु उसमें पौरुष हो तो गति हो सकती है। एक तीर्थंकर हैं जैनों के मल्ली- बाई । वह स्त्री है और दिगम्बरों ने उसे मल्लीनाथ ही कहा है । उसे स्त्री कहना