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महावीर : मेरी दृष्टि में
ही तहर के चित्त हैं - स्त्रीचित्त और पुरुषचित्त । इसलिए बहुत गहरे में मुक्ति के दो ही मार्ग हैं | स्त्री का और पुरुष का । महावीर का मार्ग पुरुष का मार्ग है, इसलिए महावीर के मार्ग पर स्त्री के लिए कोई गुंजाइश नहीं है ।
प्रश्न : ज्यादातर लोग तो मिश्रित होते हैं ?
उत्तर : हाँ, उनके लिए बीच का कोई मार्ग होता है । मार्ग बहुत हैं लेकिन मौलिक रूप से दो ही मूल मार्ग होंगे क्योंकि मनुष्य जीवन में पुरुष और स्त्री दो अति छोर हैं, जहाँ दो तरह का अस्तित्व होता है। अधिक लोग बीच में होते हैं, वे बीच का रास्ता पकड़ते हैं जिसमें वे ध्यान भी करते हैं और पूजा भी करते हैं । अब यह मजा है कि ध्यान पुरुषमार्ग का हिस्सा है और पूजा स्त्रीमार्ग का हिस्सा है । दोनों के घोल-मेल से मुक्त होना बहुत मुश्किल है, क्योंकि वहीं कभी हम थोड़ा इस रास्ते पर जाते हैं, थोड़ा उस रास्ते पर जाते हैं । इसलिए चित्त का विश्लेषण जरूरी है कि किस व्यक्ति के लिए कौन-सा मार्ग उचित है ? महावीर के मार्ग पर स्त्रियाँ उपेक्षित हैं, ऐसा नहीं है। बल्कि स्त्रीचित उपेक्षित है जैसा कि मीरा के मार्ग पर पुरुषचित्त उपेक्षित है ।
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एक बार मीरा गई वृन्दावन । वहाँ एक बड़ा साधु है, पुजारी है, सन्त है । वह उसके दर्शन के लिए उसके द्वार पर खड़ी हो गई । उसने खबर भेजी कि मैं तो स्त्रियों को देखता नहीं मिलता नहीं । मीरा ने उत्तर भिजवाया कि मैं तो सोचती थी कि एक ही पुरुष है जगत् में और वह है कृष्ण । मुझे पता न था कि तुम दूसरे पुरुष भी हो। वह भी था कृष्ण का भक्त । वह पुजारी भागा हुआ आया और कहा कि माफ करना, भूल हो गई क्योंकि कृष्ण के साथ सखियों के सिवाय और किसी का निर्वाह नहीं। वहीं राधा जैसा स्त्री चित्त चाहिए - पूर्ण समर्पित, और प्रतीक्षा करता हुआ ।
वह भी एक मार्ग है । अगर कोई पूर्ण रूप से उस तरफ जाए तो उघर से भी उपलब्धि हो सकती है। लेकिन महावीर का वह मार्ग नहीं है । महावीर के मार्ग पर स्त्रीचित्त उपेक्षित होगा ही । मगर वह स्त्री की उपेक्षा नहीं है ।
एक साध्वी ने पूछा है कि महावीर के मार्ग पर यह बड़ी बेबूझ बात है कि एक दिन का दीक्षित साधु हो, सत्तर वर्ष की दीक्षित साध्वी हो, तो भी साध्वी साधु को प्रणाम करेगी । यहं पुरुष के लिए इतना सम्मान और स्त्री के लिए इतना अपमान है जबकि महावीर समानता का ख्याल रखते हैं। एक तो जो मैंने पूरी बात कही वह ख्याल में रहे । महावीर के मन में स्त्रीचित्त यानी स्त्रेणता के