________________
५४८
महावीर : मेरी दृष्टि में
हम आनन्द चाहते हैं, शान्ति चाहते हैं, प्रेम चाहते हैं। चाहते हम सब कुछ हैं लेकिन जैसे हम है वैसे में चाहते हैं जोकि असम्भव है । हम सब चाहते हैं कि पहुंच जाएँ आकाश में लेकिन पृथ्वी से पाँव न छोड़ना पड़े। गड़े रहना चाहते हैं जमीन में, पहुँचना चाहते हैं आकाश में। अगर काई यह कहे कि आकाश में जाना है तो मैं कहता हूँ कि आकाश की फिक्र छोड़ो, पहले जमीन छोड़ो। पर वह आदमी कहता है कि जमोन हम पीछे छोड़ेंगे, पहले हम आकाश पर पहुंच जाएँ। क्योंकि आप हमसे जमीन भी छीन लो और आकाश भी न मिले, तो हम मुश्किल में पड़ जाएंगे। लेकिन बात यह है कि जमीन छोड़ने से आकाश मिल ही जाता है क्योंकि जाओगे कहां ? यह हमारी कठिनाई है कि हमेशा से हम यही चाहते रहे हैं कि आनन्द हो, शांति हो, प्रेम हो, लेकिन जो हम करते रहे हैं वह एकदम उल्टा है। उससे न शांति हो सकती है, न प्रेम और न आनन्द ।
प्रत्येक व्यक्ति के साथ यह कठिनाई है, प्रत्येक व्यक्ति द्वेष में जी रहा है, ईर्ष्या में जी रहा है, वह चाहता है कि आनन्द हो जाए। मगर ईर्ष्याल चित्त कैसे आनन्द पायेगा? ईर्ष्यालु चित्त सदा दुखी है। सड़क पर बड़ा मकान दिखता है, बगिया लगी दिखती है, कार दिखती है, किसी को स्त्रो दिखती है, किसी के कपड़े दिखते हैं तो वह दुखी है । हर चीज उसे दुःख देती है । और ऐसा भी नहीं कि बड़ा मकान ही उसे दुःख दे । कभी-कभी यह भी दुःख देता है कि यह आदमो झोपड़ी में रह रहा है और खुश है । कभी एक भिखारी भी आनन्दित दिख जाता है तो वह दुःखी है कि मेरे पास सब है और मैं सुखी नहीं है, यह भिखारी है और आनन्दित है । वह ईया चित्त में दुःख पैदा करने की कोमिया है।
ईर्ष्यालु चित्त दुःख पैदा करता है और ईर्ष्यालु चित्त सुख चाहता है । अब बड़ी मुश्किल हो गई । इस विरोध को अगर न देखा जाए तो हम फंस गए। हम फिर जी नहीं सकते, चाहते रहेंगे सुख और पैदा करेंगे दुःख । और जितना दुःख पैदा होगा उतना ज्यादा सुख चाहेंगे। और जितना ज्यादा दु ख पैदा होगा, सुख की मांग बढ़ेगो उतने ही ज्यादा जोर से ईर्ष्यालु होते चले जाएंगे और दुःख होता चला जाएगा। ऐसा एक-एक व्यक्ति भीतरी विरोध में फंसा हुआ है । इस विरोध के प्रति सजग हो जाना ही साधना को शुरूआत है कि इस विरोध के प्रति कि मैं जो चाह रहा हूँ, मैं जो कर रहा हूँ वह सही है । मैं चाह तो रहा है कि मकान के ऊपर चढ़ जाऊँ लेकिन उतर रहा हूँ नीचे की तरफ, वह तो मैं उल्टा काम कर रहा हूँ | तो ईर्ष्या मुझे नीचे की तरफ ले जा रही है। ईर्ष्या