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महावीर : मेरी दृष्टि में
पश का मांस खाया जा सकता है । यह सिर्फ उस स्थिति का समझौता था। लेकिन इस कारण बुद्ध पशु जगत् से सम्बन्ध स्थापित करने में असमर्थ हो गए। महावीर इस समझौते के लिए राजी नहीं हुए क्योंकि अगर पशु जगत् तक संदेश पहुँचाना था तो समझोता अमान्य था।
प्रश्न : गहरे में वनस्पतिजीवन और पशुजीवन में क्या अन्तर है ?
उत्तर : बहुत अन्तर है। पशु विकसित है, बहत विकसित है पौधे से । विकास के दो हिस्से उसने पूरे कर लिए हैं। एक तो पौधे में गति नहीं है, थोड़े से पौधों को छोड़कर जो पशुओं और पौधों के बीच में हैं। कुछ पौधे हैं जो जमीन पर चलते हैं, जो जगह बदल लेते हैं, जो आज यहाँ है, तो कल सरक जाएंगे थोड़ा। साल भर बाद आप उनको उस जगह न पाएंगे जहां साल भर पहले आया था। साल भर में वह यात्रा कर लेंगे थोड़ी सी। पर वे पौधे सिर्फ दलदली जमीन में होते हैं। जैसे अफ्रीका के कुछ दलदलों में कुछ पौधे है जो रास्ता बनाते हैं अपना, चलते हैं, अपने भोजन की तलाश में इधर-उधर जाते हैं । नहीं तो पौधा ठहरा हुआ है। ठहरे हुए होने के कारण बहुत गहरे बन्धन उस पर लग गए हैं और वह कोई खोज नहीं कर सकता, किसी चीज की । जो आ जाए बस वही ठीक है। अन्यथा कोई उपाय नहीं है उसके पास । पानी नीचे हो तो ठीक, हवा ऊपर हो तो ठीक, सूरज निकले तो ठीक, नहीं तो गया वह। यह जो उसकी जड़ स्थिति है उसमें प्राण तो प्रकट हुआ हैजैसा पत्थर में उतना प्रकट नहीं हुआ। वैसे पत्थर भी बढ़ता है, बड़ा होता है। दुःख की संवेदना पत्थर को भी किसी तल पर होती है। लेकिन पौधे को दुःख की संवेदना बहुत बढ़ गई है। चोट भी खाता है तो दुःखी होता है । शायद प्रेम भी करता है, शायद करुणा भी करता है। लेकिन बँधा है जमीन से । तो परतंत्रता बहुत गहरी है। और उस परतंत्रता के कारण चेतना विकसित नहीं हो सकती। ___अब हमें ख्याल में नहीं है कि गति से चेतना विकसित होती है . जितनी हम गति कर सकते हैं स्वतंत्रता से उतनी चेतना को नई चुनौतियां मिलती है, नये अवसर नये मौके, नये दुःख, नये सुख, उतनी चेतना जगती है। नये का साक्षात्कार करना पड़ता है। वृक्ष के पास इतनी चेतना नहीं है तो वृक्ष करीब उस हालत में है जिस हालत में आप क्लोरोफार्म मे हो जाते हैं । आप चल-फिर नहीं सकते। आप हाथ नहीं उठा सकते । कोई गरदन काट जाए तो कुछ कर नहीं सकते । कृति उतनी ही चेतना देती है जितना आप उसका उपयोग