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महावीर : मेरो दृष्टि में
लेकिन ऐसे आदमी अगर झंझट से भागते हैं तो नई झंझटें खड़ी कर लेते हैं। इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आदमी वहीं का वहीं रहा। वह नई झंझटें निर्मित कर लेता है। ऐसा मादमी पलायनवादी कहा जा सकता है। लेकिन महावीर ऐसे पलायनवादी नहीं है। क्योंकि वह कोई नई झंझट खड़ी नहीं कर रहे हैं । और किसी भय से नहीं भाग रहे हैं। ___ अगर कोई आदमी किसी ज्ञानपूर्ण चेनता में सीढ़ी बदल देता है, दूसरी सीढ़ी पर चला जाता है तो यह पलायन नहीं है। अगर कोई आदमी भाग रहा हो किसी से डर कर तो एक बात, और एक आदमी भाग रहा हो कुछ पाने के लिए तो वह बिल्कुल दूसरी बात । वह आदमी भी भाग रहा है जिसके पीछे बन्दुक लगी हो और वह आदमी भी दौड़ता है जिसको हीरों की खदान दिखाई पड़ गई है । लेकिन एक के पीछे बन्दूक का भय है, इसलिए भागता है; एक को हीरों की खदान दिख गई है, इसलिए भागता है। दूसरे आदमी को आप भागने वाला नहीं कह सकते, उसे गतिवान् कह सकते हैं, क्योंकि वह किसी चीज से भाग नहीं रहा है। उसकी दृष्टि का जोर है जहाँ वह जा रहा है, जहाँ से वह जा रहा है वहां नहीं । दोनों हालतों में वह जगह छूट जाती है। लेकिन दोनों हालतों में बुनियादी फर्क है। महावीर कहीं से भी भागे हुए नहीं है लेकिन निन्यानवे भागे हुए संन्यासियों में से एक गया हुआ संन्यासी पहचानना मुश्किल हो जाता है । और वह मुश्किल हमारी समझ में ऐसी बाधाएं खड़ी कर देती हैं कि उसके दो ही रास्ते हैं। या तो हम उन संन्यासियों को गया हुआ मान लेते हैं, और या हम उन्हें भागा हुआ मान लेते हैं। जबकि जरूरत इस बात की है कि हम जांच-पड़ताल करें कि कोई प्रादमी पाने गया है. या कोई आदमी सिर्फ छोड़कर भागा है।
पाने गया हो तो जरूर कुछ चीजें छूट जाती हैं। आप सीढ़ियां चढ़ रहे हैं । दूसरी सीढ़ी पर पैर रखते हैं, पहली सीढ़ी छूट जाती है, पहली सीढ़ी से आर भागते नहीं, सिर्फ पहली सीढ़ी छूटती है क्योंकि दूसरे सीढ़ो पर पैर रखना जरूरी है। जो लोग ऊंची सीढ़ियों पर पैर रखते हैं, नीची सीढ़ियाँ छूट जाती हैं। नीची सीढ़ियों से जो डरता है वह ऊँची सीढ़ी पर नहीं पहुंच पाता, वह नोचे की सीढ़ियों पर उतर आता है क्योंकि वह डरा हुआ है। उसका भागना सिर्फ उसे और नीचे की सीढ़ियों पर ले आता है। इसलिए अवसर ऐसा होता है कि अगर एक गृहस्थ भाग कर संन्यासी हो जाए तो वह महागृहस्थ हो जाता है। उसकी चाल गृहस्थी की चाल से और भी ज्यादा पाखण्डी हो जाती है ।