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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- ८
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है, ( २ ) घड़ा नहीं है, क्योंकि मिट्टी ही तो है, और ( ३ ) घड़ा है भी, नहीं भी है । घड़े का अर्थ में घड़ा है; मिट्टी के अर्थ में नहीं भी है' । एक आदमी कह सकता है : 'यह तो मिट्टी ही है, घड़ा कहाँ ?" तो इसको गलत कैसे कहोगे ? मिट्टी ही तो है। लेकिन एक आदमी कहे कि 'नहीं, मिट्टी है ही नहीं, यह तो घड़ा है । क्योंकि मिट्टी तो पड़ी है बाहर, उसमें और इसमें भेद है' तो उसे भी सही मानना पड़ेगा । सत्य के तीन कोण हो सकते हैं( १ ) है, ( २ ) नहीं है, (३) दोनों, नहीं भी और है भी । 'यह त्रिभंगी महावीर के पहले भी थी। लेकिन महावीर ने इसे सप्तभंगी किया है । और कहा कि तीन से काम नहीं चलेना । सत्य और भी जटिल है । इसमें चार 'स्यात्' और भी जोड़ने पड़ेंगे। तो बहुत ही अद्भुत बात कही लेकिन बात कठित होती चली गई, उलझ गई और साधारण आदमी की पकड़ के बाहर हो गई। ये तीन बातें ही पकड़ के बाहर हैं लेकिन फिर भी समझ में आती हैं। घड़ा सामने रखा है । कोई कहता है - घड़ा है। हम कहते हैं : हाँ, घड़ा । लेकिन, हम एकदम ऐसा नहीं कहते कि 'हाँ, घड़ा है।' हम कहते हैं, 'स्यात् घड़ा है ।' क्योंकि दूसरी संभावना बाकी है कि कोई कहे कि मिट्टी ही है, घड़ा कहीं, तो हम सिद्ध न कर पाएँगे कि घड़ा कहां है । तो हम कहते हैं : 'स्यात् घड़ा है ।' 'स्यात् घड़ा नहीं है', 'स्यात् घड़ा है भी और नहीं भी है ।' महावीर ने इसमें चौथी भंगी 'जोड़ो' और कहा : 'स्यात् अनिर्वचनीय हैं, शायद कुछ ऐसा भी है जो नहीं कहा जा सकता यानी इतने से काम नहीं चलता है। मिट्टी है, घड़ा है, यह भी ठीक है। लेकिन है जो नहीं कही जा सकती। इसे कहना मुश्किल है। क्योंकि घड़ा अणु भी है, परमाणु भी है, इलेक्ट्रोन भी है, प्रोट्रोन भी है, विद्युत भी है - सब है और
कुछ बात ऐसी भी
छोटी सी चीज भी इतनी
ओर एक बात तो पक्की है
इस सबको इकट्ठा करना मुश्किल है । घड़ा जैसी ज्यादा है कि इसको अनिर्वचनीय कहना पड़ेगा। कि घड़े में जो है-पन है, एग्रिटंग्स है, जो होना है, वह तो अनिर्वचनीय है ही क्योंकि 'है' की क्या परिभाषा ? क्या अर्थ ? अस्तित्व का क्या अर्थ ? घड़े का भी अस्तित्व है और अस्तित्व अनिर्वचनीय है । अस्तित्व तो ब्रह्म है। महावीर ने चौथा जोड़ा । 'शायद घड़ा अनिर्वचनीय है।' पाँचवा जोड़ा कि 'स्यात् है और अनिर्वचनीय है ।' छठवां जोड़ा कि 'स्थात् नहीं है और अनिर्वचनीय है' और सातवां जोड़ा कि 'स्यात् है भी, और नहीं भी है और अनिर्वचनीय है । अब यह जटिल होती चली गई इसलिए अनुयायी खोजना मुश्किल है।'
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