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महावीर : मेरी दृष्टि में
तो मैंने जो यह कहा कि मेहर बाबा लोट गया मकान से या हवाई जहाज से उतर गया, इसका बहुत गहरा अर्थ यह है कि व्यक्ति का अहंकार अभी सुरक्षित है । अभी विश्व के प्रवाह में वह अलग होने को, पृथक होने को, अपने को बचाने को आतुर और उत्सुक है। मैंने यह नहीं कहा कि जो किया वह ठोक किया । मैंने कुल इतना कहा कि इस बात की सम्भावना है कि बातें पहले से जानी जा सकती हैं । लेकिन परम स्थिति यह है कि जीवन एक बहाव हो, तैरना भी न रह जाए । जिन्दगी जहाँ ले जाए और जो हो उसके साथ चुपचाप राजी हो जाना चाहिए । ऐसी स्थिति को ही मैं आस्तिकता कहता हूँ। मैं कहूंगा मेहर बाबा आस्तिक नहीं है। जरा मुश्किल होगी यह समझने में । आस्तिकता का मतलब यह है कि मृत्यु भी आ जाए तो वह वैसे ही स्वीकृत है जैसा जीवन स्वीकृत था । भेद क्या है मृत्यु और जीवन में ? मकान के फर्क क्या है ? जैसे पौधे अंकुरित होते हैं, फूल बनते हैं इतना हो शान्त और चुपचाप बहाव होना चाहिए जिसमें अहंकार कोई अवरोध ही नहीं डालता, कोई बाधा ही नहीं डालता । तभी मुक्ति पूरे अर्थों में सम्भव है तो इसलिए मैं करने को गलत ही कहता हूँ । दूसरी बात पूछी जा सकती है कि यदि संकल्प से सब हो सकता है तो फिर कुछ भी किया जा सकता है, धन भो, यश भी कुछ भी इकट्ठा किया जा सकता है, चाहे वह परोपकार के लिए हो, चाहे स्वार्थ के लिए हो - हीं निश्चित ही किया जा सकता है । इसमें कोई कनिनाई नहीं है । लेकिन वही कर सकेगा जो अभी घन के लिए जोता है, यश के लिए जोता है ।
बचने में और गिरने में
अभी कल ही बात हो रही थी कि रामकृष्ण को कैंसर हो गया और राम कृष्ण के भक्त उनसे कहने लगे कि आप एक बार क्यों नहीं कह देते हैं मां को कि कैंसर ठीक करो । रामकृष्ण ने कहा कि दो बातें हैं । एक तो जब मैं उनके सामने होता है तो मैं कैंसर भूल जाता है। यानी ये दो बातें एकसाथ नहीं होती हैं । जब मैं उस दशा में होता हूँ तब कैंसर होता ही नहीं । और जब कैंसर होता है तब मैं उस दशा में नहीं होता । इन दोनों का कभी ताल-मेल नहीं होता । और अगर हो भी जाए तो मैं परमात्मा से कहूँ कि कैंसर ठीक कर दे तो इसका मतलब यह हुआ कि में परमात्मा से ज्यादा जानता हूं । इसलिए जो हो रहा है, उसे सहज स्वीकार करने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है ।
विवेकानन्द बहुत गरीब थे। उनके पिता जब मरे तो बहुत कर्ज छोड़ गए। कई लोगों ने विवेकानन्द को कहा कि रागकृष्ण के पास जाते हो, उनसे पूछ लो कोई तरकीब, कोई रास्ता जिससे धन उपलब्ध हो जाए, कर्ज चुका दो ।