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मात्मा है तो उसका मतलब सिर्फ इतना है कि हम भी आत्मा हो सकते है, अभो है नहीं। और हम उसी क्षण मात्मा हो जाएंगे जिस दिन अस्तित्व आमने-सामने हमारे हो जाएगा, उसी क्षण जब हम अस्तित्व को देखने, जानने, पहचानने में समर्थ हो जाएंगे। उसके पहले हम अस्तित्ववान् नहीं है।
इसे दूसरी तरह भी समझा जा सकता है : अतीत और भविष्य मन के हिस्से हैं, वर्तमान आत्मा का हिस्सा है। मन हमेशा अतीत और भविष्य में रहता है, पीछे या आगे। यहां, इसी वक्त, अभी, अब ऐसी कोई चीज मन में नहीं होती। मन संग्रह है अतीत का और भविष्य की योजनाओं का । मन जीता है अतीत और भविष्य में । अतीत और भविष्य के बीच में एक अत्यन्त सूक्ष्म रेखा है जो दोनों को तोड़ती है। वह वर्तमान है। और वह इतनी बारीक है कि उस बारीक रेखा के अनुभव के लिए हमें अत्यन्त शांत होना जरूरी है। . जरा सा कम्पन हुआ कि हम चूक जाएंगे। जरा सा भी कम्पन हुमा भीतर कि निकल जाएगी रेखा। हमारा कम्मन उसे पकड़ नहीं पाएगा। इसलिए प्रकम्प चेतना जिस दिन हो जाए, तब समय के भरण का छोटा सा दर्शन भी हमें होगा। वह दर्शन हमें अस्तित्व में उतार देता है यानो ऐसा समझें कि वर्तमान का क्षणही द्वार है अस्तित्व में प्रवेश का ब्रह्म में प्रवेश कहे, सत्य में प्रवेश करें, मोक्ष में प्रवेश कहें, कुछ भी कहें, वर्तमान के क्षण से हम प्रविष्ट होते हैं। वही है द्वार। और वह चूक-चूक जाता है।
एक कहानी मैंने सुनी। एक अंधा आदमी एक बड़े भारी राजभवन में भटक गया है। बड़ा हे भवन ! हजारों द्वार है उस भवन में । लेकिन एक ही बार खुला है। सब द्वार बन्द है। वह अंधा आदमी द्वारों को टटोलता. टटोलता भटक रहा है कि शायद कोई द्वार खुला मिल जाए। बस पहुंचाना रहा है खुले द्वार के करीब। ऐसे हजारों द्वार टटोलता-टटोलता वह पक गया है। और जब वह ठीक उस द्वार पर पहुंचा है जो खुला है तो उसे सुजान उठ गई है। उसने माथे पर खुजाया है और वह द्वार फिर चूक गया है। अब फिर हजारों द्वार है और वह फिर टटोल रहा है। मीलों के चक्कर के बाद वह फिर उस हार पर बाया है लेकिन इसना थक गया है टटोलते टटोलते कि उसने टटोलना बन्द कर दिया है। वह कर गया है। वह टटोलना छोड़ देता है। नासिर है भी वह द्वार कि नहीं। लेकिन इतने में वह बार फिर निकल गया है। लेकिन क्या करेगा अंबा आदमो ? निकलना है तो कने या न गये। फिर
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