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महावीर : मेरी दृष्टि में चरित्र है । वहाँ नीति की पकड़ गहरी है। वहाँ अभिनय भारी है। लेकिन कृष्ण के मामले को हम कहते हैं-'लीला।' क्योंकि वहाँ चीजें तरल है। पकड़ नहीं है। सब खेल है। और भीतर एक आदमी बाहर खड़ा है जो खेल के बिल्कुल बाहर है। क्या ऐसा कर सकते हैं आप कि क्षण भर खेल के बाहर उतर आएं, वे वस्त्र उतार दें जो नाटक के मंच पर पहने थे, वे चेहरे भी निकाल दें, वह मेकअप भी हटा दें जो काम करता था मंच पर, और खाली घर लोट पाएँ जैसे आप हैं ? ऐसा अगर कर सकें तो इसके पहले हिस्से का नाम प्रतिक्रमण है-इस लौटने का नाम । दूसरे का नाम है सामायिक जब आप अपने में ठहर गए हैं, जैसे झींगुर बोल रहा है, वृक्षों में पत्ते लग रहे हैं, आकाश में चांद की किरणें गिर रही हैं, ऐसा ही किसी क्षण में आप कुछ कर नहीं रहे हैं, जो हो रहा है हो रहा है। स्वांस चल रही है चल रही है, आप चला नहीं रहे हैं। आंख झपक रही है सपक रही है, आप झपका नहीं रहे हैं। पर थक गया है, हिल गया है, आपने हिलाया नहीं है । और आप बिल्कुल ऐसे हो गए हैं जैसे हैं ही नहीं। उस क्षण में आपको पता चल सकेगा कि मैं कौन हूं, मेरी आत्मा क्या है, मेरा अस्तित्व क्या है और एक बार इसका पता चल जाए तो फिर जीवन दूसरा होगा; फिर जीवन वही कभी नहीं होगा जो था। इसे हम दो चार उदाहरणों से समझाने की कोशिश करें।
तिब्बत में एक फकीर हुआ है माप। वह अपने गुरु के पास गया। गुरु. लेटा हुया है। वह गुरु से कहता है : आप इस समय क्या कर रहे हैं ? गुरु कहता है : किसी समय मैंने कुछ नहीं किया। मार्पा कहता है : कुछ तो कर हो रहे होगें ? बिना किए कैसे हो सकते हैं ? गुरु कहता है : करने वाला कभी हुआ है ? किया कि गए । नहीं किया कि पाया। मार्पा कहता है कि कुछ समझ में नहीं आया। गुरु कहता है : तुम समझने की कोशिश कर रहे हो इसलिए समझ में कैसे आए ? समझने की कोशिश न करो। देखो, जानो और पहचानो। .
एक जर्मन विचारक है हैरीगेल । वह जापान गया। वहां उसने बहुत सी तरकीबें खोजी जिनके माध्यम से वह 'सामायिक' में ले जाना सिखाते हैं । उनमें फूल जमाने की कला भी एक है जिससे आप ध्यान को उपलब्ध हो जाते हैं। जिस दिन फूल जमाने की कला में कोई निष्णात हो जाता है, गुरु पूछता है। जब वह कहता है कि बहुत अच्छे जमाए फूल तो उसका गुरु कहता है उससे : ऐसा मत कह, तू कह कि फूल जम गए, मैंने कुछ किया नहीं है, फूल से जमना