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महावीर । मेरी दृष्टि में
जाएंगे। मगर महावीर बैठेमे तो स्वयं में खो जाएंगे। आप बैठेंगे तो स्त्रियों में खो जाएंगे। आप कहेंगे कि यह तो महावीर ने भी किया जो हम कर रहे हैं। हमारी कठिनाई यह है कि ऊपर का रूप हमें दिखाई पड़ता है। महावीर जंगल जाते दिखाई पड़ते हैं। उनके भीतर क्या घटी है, यह हमें दिखाई ही नहीं पड़ता। और अगर वह हमें दिखाई पड़ जाय तो बिल्कुल बात और हो हो जाएगी।
बिना अनुभव के कोई मुक्ति नहीं है । पाप के अनुभव के बिना पाप से भी मुक्ति नहीं है। इसलिए भयभीत होकर जो पाप से रुका हुआ है, वह पाप से मुक्त नहीं होगा। वह सिर्फ पाप करने की शक्ति अर्जित कर रहा है। और आज नहीं, कल वह पाप करेगा ही। और पाप करके पछताएगा। स्वयं पछता कर वह फिर दमन करने लगेगा । दमन करके वह फिर पाप करेगा और फिर पछताएगा और यह एक बुरा चक्र है पाप पश्चात्ताप, पाप पश्चात्ताप। मैं कहता हूँ पश्चात्ताप भूल कर भी मत करना। पश्चात्ताप की जरूरत ही नहीं है। पश्चात्ताप का मतलब है कि पाप पहले हो गया है, पीछे फिर आप पश्चात्ताप कर रहे हैं। मैं कहता हूं जानकर पाप करना, पूरे जागे हुए पाप करना। जो भी करना पूरे जागे हुए करना। किसी को गालो भी देना तो पूरे जागे हुए देना। शायद दुबारा गाली देने का मौका न आए और पश्चात्ताप की भी जरूरत न पड़े।
एक फकीर ने लिखा है कि उसका बाप मर रहा था। बूढ़े बाप के पास वह बैठा था। उसकी उम्र कोई पन्द्रह-सोलह साल की थी । मरते हुए बाप ने उसके कान में कहा कि तू एक ही ध्यान रखना : किसी भी बात का जवाब चौबीस घंटे से पहले मत देना। गौर जिन्दगी भर का अनुभव मैं तुझे एक ही सूत्र में कहे देता हूँ : किसी भी बात का जबाब चौबीस घंटे के पहले देना हो मत । वह फकीर बड़ी शांति को उपलब्ध हुआ और जब लोगों ने उससे पूछा कि तुम्हारी शान्ति का रहस्य क्या है तो उसने कहा कि रहस्य बड़ा अद्भुत है। मेरा बाप मर रहा था और उसने कहा था कि चौबीस घंटे से पहले तुम किसी का जवाब ही मत देना। अगर किसी स्त्री ने मुझसे कहा मैं तुझे बहुत प्रेम करती हूँ तो मैं चौबीस घंटे चुप ही रहा। चौबीस घंटे के बाद सब खत्म ही हो चुका था क्योंकि यह स्त्री विदा ही हो चुकी थी दिमाग से उसके। उसने कहा : यह क्या बात है। हम जब कहें तव तो तुम कुछ उत्तर ही नहीं देते। अब आए हो जब नशा ही जा चुका है। किसी ने गाली दी तो वह चौबीस