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महावीर : मेरी दृष्टि में ऐसा समाज बनाने की जरूरत है जहां व्यक्ति हो । व्यक्ति अलग-अलग होंगे अलग-अलग रास्तों पर चलेंगे। लेकिन यही व्यवस्था होनी चाहिए कि अलगअलग रास्तों पर चलने वाले लोग, अलग-अलग व्यक्तित्व वाले लोग एक-दूसरे के प्रति प्रेमपूर्वक रह सकें।
पोलपरे के खिलाफ एक आदमी था और उसने पोलपरे को इतनी गालियां दी, और उसके खिलाफ किताबें लिखीं कि पोलपरे को नाराज हो जाना चाहिए था। वह एक दिन रास्ते में पोलपरे को मिला और कहा कि महाशय, आप चाहते होंगे कि मेरी गर्दन कटवा दें क्योंकि मैं आपके खिलाफ ऐसी बातें कर रहा हूँ। पोलपरे ने कहा नहीं, अगर तुम मुझसे पूछोगे तो तुम जो कह रहे हो उसे कहने का तुम्हें हक है। और इस हक को बचाने के लिए अगर जरूरत पड़े तो मैं अपनी जान गंवा दूंगा हालांकि तुम जो कह रहे हो, वह गलत है। हमारा भिन्न-भिन्न होने का सवाल नहीं है। सवाल हमारी भिन्नता की स्वीकृति का है। अभी जो समाज हमने पैदा किया है, वह भिन्नता को स्वीकार नहीं करता। वह या तो भिन्नता का अपमान करता है या उसका सम्मान करता है। और यदि वह भिन्नता को नहीं मानेगा और भिन्न रहता हो चला जाएगा तो वह कहेगा : भगवान् है, मगर कभी स्वीकार नहीं करेगा कि हमारे बीच में हैं। अच्छी दुनिया वह होगी जहां भिन्नता स्वीकृत होगी एक-एक व्यक्ति का अख्तिीय होना स्वीकृत होगा। और हम दूसरे की भिन्नता को आदर देना सीखेंगे।
अभी हम यह कहते है कि जो हमसे राजी है वह ठीक है, जो हमसे राजी नहीं, वह गलत है। यह बड़ी अजीब बात है! यह बहुत हिंसक भाव है कि जो मुझसे राजी है वह ठीक है। जो मुझसे राजी है इसका मतलब यह हुआ कि जिसका कोई व्यक्तित्व नहीं है, मैं जिसको पी गया पूरी तरह वह ठीक है।
और जो मुझसे राजी नहीं, वह गलत है। यह बहुत ही शोषक वृत्ति है । इसको मैं हिंसा मानता हूँ। और जो गुरु अनुयायियों को इकट्ठे करते फिरते हैं, वे हिंसक वृत्ति के लोग हैं । वे कहते हैं कि हमारे साथ एक हजार लोग राजी है; एक हजार लोग हमें मानते हैं। यानी एक हजार लोगों को उन्होंने मिटा दिया है। दस हजार लोग हों तो उनको और मजा आए, करोड़ हैं तो और, क्योंकि इतने लोगों को उन्होंने बिल्कुल पोंछकर मिटा दिया है। ये खतरनाक लोग है । अच्छा आदमी यह नहीं चाहता कि आप उससे राजी हों। अच्छा आवमी पाहता है कि आप सोचना शुरू करें। हो सकता है कि सोचना आपको