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महावीर । मेरी दृष्टि में
इसलिए पैर दबाऊं, अगर यह कर्त्तव्य भाव है तो आनन्द कभी नहीं मिलेगा।
और अगर इसे आनन्द आ रहा है पैर दबाने में तो फिर व्रत नहीं रह गया। फिर इसकी एक समझ है, एक प्रेम है, एक दूसरी बात है। एक नर्स है । वह एक बच्चे को व्रतपूर्वक पाल रही है। एक मां है। वह अपने बच्चे को आनन्द. पूर्वक पाल रही है। और अगर कोई उस माँ से पूछेगा कि 'तूने अपने बेटे के लिए बहुत किया तो वह कहेगी कि कुछ भी नहीं कर पाई। जो कपड़े देने थे नहीं दे पाई, जो खाना देना था नहीं दे पाई। लेकिन कोई नर्स से पूछे : 'तुमने फलां लड़के के लिए बहुत किया।' वह कहेगी : 'बहुत किया। पांच बजे सुबह से काम पर जाती थी, पांच बजे शाम को लौटती थी । बहुत किया।'
___ कर्त्तव्य, व्रत की भाषा है, व्रत की बात है। प्रेम अव्रत की भाषा है, अव्रत की बात है। लेकिन अव्रत अकेले काफी नहीं है। अव्रत और जागरण । वह कोई भी करे, जैन करे, मुसलमान करे, ईसाई करे, पुरुष करे, स्त्री करे, इससे कोई सम्बन्ध नहीं है। घटना उस करने से घटती है। लेकिन होता क्या है : परम्पराएं धीरे-धीरे जड़ नियम बन जाती हैं और जड़ नियम थोपने की प्रवृत्ति शुरू हो जाती है और जब जड़-नियम थोप दिए जाते हैं और लोग उन्हें स्वीकार कर लेते हैं तो वे जड़ नियम भी लोगों को जड़ करते हैं। इसलिए व्रती.व्यक्ति जड़ होता चला जाता है धीरे-धीरे ।
प्रश्न : महावीर का पौष या व्रती का जागरण जल्दी फलित होगा या अवती का जागरण जल्दी फलित होगा ?
- उत्तर : जागरण, चाहे वह अव्रती का हो या व्रती का हो, फलीभूत होता है। आप जिस स्थिति में हों, वहीं जाग जाएं। हम किसी न किसी स्थिति में हैं हो, किन्हीं-न-किन्हीं सीमाओं में बंधे हैं, कुछ न कुछ कर रहे हैं । कोई दूकान चला रहा है, कोई मन्दिर में पूजा कर रहा है, कोई मकान बना रहा है, कोई मन्दिर बनवा रहा है, कोई उपवास कर रहा है, कोई खाना खा रहा है। हम कुछ न कुछ कर रहे हैं। हम जो भी कर रहे हैं उसके प्रति जागरण फलीभूत होता है। हम जो भी कर रहे हैं इससे कोई सम्बन्ध नहीं । एक आदमी चोरी कर रहा है और एक आदमी पूजा कर रहा है। करने के प्रति जागने से फल आना शुरू हो जाता है। चोरी करने वाला चोरी करने के प्रति जाग जाए तो वही फल लाएगा। जागरण के पीछे बल होगा अवश्य ।
पवन : व्रती का ज्यादा होगा या अवती का?