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महावीर : मेरी दृष्टि में
ने इंग्लैंड में विज्ञान के खिलाफ जो बात कही, अगर हम जीत जाता तो विज्ञान का जन्म नहीं होता। अगर चार्वाक जीत जाता तो धर्म का जन्म नहीं होता क्योंकि चार्वाक ने भी यही कहा कि इसमें कोई क्रम नहीं है। असम्बद्ध क्रम है घटनामों का। चोर मजा कर सकता है, अचोर दुःख उठा सकता है। क्रोधी मानन्द कर सकता है, अक्रोधी पीड़ा उठा सकता है। जीवन के सभी कर्म असम्बद्ध हैं। इनमें कोई सम्बन्ध ही नहीं है। और यदि कहीं कोई सम्बन्ध दिखाई पड़ता है तो वह समानान्तरता की भूल है। वह सिर्फ इसलिए दिखाई पड़ जाता है कि चीजें समानान्तर कभी-कभी घट जाती हैं। बस बोर कोई मतलब नहीं है । लेकिन बुद्धिमान् आदमी इस चक्कर में नहीं पड़ता है, चार्वाक ने कहा । बुद्धिमान् आदमी जानता है कि किसी कर्म का किसी फल से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिए जो सुखद है, वह करता है चाहे लोग उसे बुरा कहें चाहें भला कहें क्योंकि दुबारा लौटना नहीं है, दुबारा कोई जन्म नहीं है । ___ चार्वाक के विरोध में ही महावीर का कर्म सिद्धान्त है। इस विरोध में ही कि न तो वस्तु-जगत् में और न चेतना-जगत् में कार्य-कारण के बिना कुछ हो रहा है। विज्ञान में तो स्थापित हो गई बात ह्य म हार गया और विज्ञान का भवन खड़ा हो गया। लेकिन धर्म के जगत् में अब भी स्थापित नहीं हो सकी यह बात । और न होने का बड़े से बड़ा जो कारण बना वह यह कि विज्ञान कहता है : अभी कारण, अभी कार्य; तथाकथित धार्मिक कहते हैं : अभी कारण, कार्य अगले जन्म में । इससे सब गड़बड़ हो गया। यानी धर्म का भवन खड़ा नहीं हो सका। इस अन्तराल में सब बेईमानी हो गई। क्योंकि यह अन्तराल एकदम झूठ है। कार्य और कारण में अगर कोई सम्बन्ध है तो उसके बीच में अन्तराल नहीं हो सकता क्योंकि अन्तराल हो गया तो सम्बन्ध क्या रहा ? चीजें असम्बद्ध हो गई, अलग-अलग हो गई। फिर, कोई सम्बन्ध न रहा। और यह व्याख्या नैतिक लोगों ने खोज ली क्योंकि वे समझा नहीं सके जीवन को। तो जीवन की पहली बात मैं आपको समझा दूं जिसकी वजह से यह अन्तराल टूटे । मेरी अपनी समझ यह है कि प्रत्येक कर्म तत्काल फलदायी है। जैसे मैंने क्रोध किया तो मैं क्रोध करने के क्षण से ही क्रोध को भोगना शुरू करता है। ऐसा नहीं कि अगले जन्म में क्रोध का फल भोगू । क्रोष करता हूँ और क्रोध का दुःख भोगता हूँ। क्रोष का करना और दुख का भोगना साथ-साथ चल रहा है । कोष विदा हो जाता है. लेकिन दुःख का सिलसिला देर तक चलता है। तो पहला हिस्सा कारण हो गया, दूसरा हिस्सा कार्य हो गया। यह असम्भव है कि कोई