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महावीर : मेरी दृष्टि में
व्रत का मतलब क्या है ? व्रत का मतलब है चित्त की वह दशा जिसके विपरीत आप व्रत ले रहे हैं । व्रत है दमन का नियम । मैं कामवासना से भरा हूँ, ब्रह्मचर्य का व्रत लेता हूँ । हिंसा से भरा हूँ, अहिंसा का व्रत लेता हूँ । परिग्रह से भरा हूँ, अपरिग्रह का व्रत लेता है । परिग्रह का व्रत नहीं लेना पड़ता किसी को, न हिंसा का लेना पड़ता है, न कामवासना का लेना पड़ता है। क्योंकि जो हम हैं उसका व्रत नहीं लेना पड़ता । जो हम नहीं हैं उसका व्रत लेना पड़ता है। तो व्रत का मतलब हुआ कि जो मैं हूँ, वह उलटा हूँ और उससे ठीक भिन्न उलटा व्रत ले रहा हूँ । उस व्रत को बांधकर मैं अपने को बदलने की कोशिश करूंगा । निश्चित ही व्रत दमन लाएगा, मेरा भाव है लोभ का कि मैं करोड़ों रुपए कमा लूँ और व्रत लेता हूँ कि मैं एक लाख रुपए की ही सीमा बांधता हूँ । मेरा मन है करोड़ वाला तो मैं करोड़ वाले मन को लाख वाले मन की सीमा में बांधने की चेष्टा करूंगा । चेष्टा का एक ही परिणाम हो सकता है कि मेरा लाभ दूसरी जगह से प्रकट होना शुरू हो । मेरा मन कहे कि लाख पर अगर तुम रुक गए तो स्वर्ग में तुम्हें जगह मिलेगी । यह लोभ का नया रूप हुआ । लोभ करोड़ का था । लाख पर बांधने की कोशिश की तो उसकी धाराएं टूट गई । अब वह स्वर्ग में लोभ करने लगा कि वहाँ अप्सराएं कैसे मिलेंगी, कल्पवृक्ष कैसे मिलेगा, मकान कैसा होगा, भगवान् के पास होगा कि दूर होगा ?
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प्रश्न : व्रती को निःशल्य तो होना ही है क्योंकि यह तो उसकी शर्त है ।
उत्तर : न, नहीं । असल में व्रती निःशल्य हो ही नहीं सकता क्योंकि व्रत ही एक शल्य है । अव्रती निःशल्य हो सकता है । व्रती निःशल्य नहीं हो सकता । शल्य तो लगी है पीछे । कांटा चुभा है छाती में । एक स्त्री निकल रही है, वह अपनी पत्नी नहीं है, तो उसको देखना नहीं है, वह चाहे कैसी भी हो। और जो चुपचाप देख लेता है, वह शायद कम शल्य से भरा हुआ है । कांटा कम है उसके चित्त में । लेकिन जो आँख बंद करके एक तरफ बैठ जाता है कि हमने व्रत लिया है कि हमें पत्नी के सिवाय किसी का चेहरा नहीं देखना है तो उसको एक कांटा चुभा ही हुआ है चौबीस घंटे । व्रती तो निःशल्य हो हो नहीं सकता । अव्रती निःशल्य हो सकता है लेकिन मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि अव्रती होने से ही कोई निःशल्य हो जाएगा । अव्रती होना हमारे जीवन की स्थिति है । अव्रती दशा में जागना हमरी साधना है । अव्रती स्थिति में दो विकल्प हैं या तो अव्रती स्थिति को व्रत लेकर तोड़ो। लेकिन तब भीतर