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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-११
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घंटे बाद जवाब देने गया कि जो तुमने गाली दो थो उसका हम जवाब देने आए हैं। उस आदमी ने कहा : लेकिन अब तो सब बात ही खत्म हो गई। अब क्या फायदा ? अब तुम क्या जबाब दे रहे हो। उस आदमी ने लिखा है कि मैं जब भी चौबीस घंटे बाद गया मैंने पाया कि मैं हमेशा लेट पहुँचता हूँ, ट्रेन छूट चुकी होती है। वह तो उसी वक्त हो सकता था और उसी वक्त अगर होता तो मूच्छित होता। और चौबीस घंटे सोच-विचार के बाद हुआ तो वह बड़ा जागृत था। कई दफे तो मैं यह कहने गया कि तुमने गाली बिल्कुल ठीक दी थी। चौबीस घंटे सोचा तो पाया कि तुमने जो कहा था, बिल्कुल ही ठीक कहा था कि मैं बेईमान हूँ। दबाने की बात नहीं है। अगर दबाया चौबीस घंटे तब तो गाली और मजबूत होकर पाएंगी। चौबीस घंटे समझने की कोशिश की कि क्या उत्तर देना है उस आदमी को तो बात बदल जाएगी। उसके बाप ने कहा है कि कोई अगर तुम्हें गाली दे तो मैं मना नहीं करता कि तू गाली मत देना और अगर बाप यह कहता कि तू गाली मत देना चौबीस घंटे, बाद चमा मांगना तो बात उल्टी हो जाती । तब वह गालो को दबाता । उसके बाप ने कहा कि पाली जरूर देना, मगर चौबीस घंटे बाद देना। लेकिन चौबीस घंटे समझ लेना कि कौन-सी गाली देनी है, कितने वजन को देनी है, देनी है कि नहीं देनी है, उसकी गाली का मतलब क्या है ? अगर बाप यह कहता है कि चौबीस घंटे बाद क्षमा मांगने जाना तो शायद वह दमन करता । उसने कहा था कि तू गाली देना मजे से लेकिन चौबीस घंटे बाद । इतना अन्तराल छोड़ देना और यह बड़े मजे कि बात है कि कोई भी पूरा काम अन्तराल पर नहीं किया जा सकता, तत्काल ही किया जा सकता है क्योंकि अन्तराल में समझ आ जाती है, स्याल आ जाता है।
डेल कार्नेगी ने एक अनुभव लिखा है कि लिकन पर उसने भाषण दिया रेडियो से और जन्मतिथि गलत बोल गया। उसके पास कई पत्र पहुँचे गुस्से के कि तुमको जन्मतिथि तक मालूम नहीं है, तुमने भाषण किसके लिए दिया और एक स्त्री ने उसको बहुत ही सस्त पत्र लिखा और उसमें वह जितनी गालियां दे सकती थीं दीं। बड़ा क्रोध आया कार्नेगी को। उसने उसी वक्त रात को उठकर जवाब लिखा। जैसी गालियां उसने दी, उसने दुगुने वजन को गालियाँ दी। लेकिन रात को देर हो गई थी और नौकर चला गया था। उसने चिट्ठी दवाकर रख दी। सुबह उठा, सोचा कि एकबार चिट्ठी को पढ़ लूं। लेकिन अब बारह घंटे का फर्क पड़ गया था। चिट्ठी पढ़ो तो लगा कि ज्यादती हो गई है