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नहीं मैं बहुत थक गया । कुछ खोजना नहीं है । विश्राम के लिए आया हूँ । तब गुरु ने कहा : आओ, स्वागत है । कभी-कभी जो श्रम से नहीं मिलता है, विश्राम में मिल जाता है ।
प्रवचन - १०
न भूत में जाना, न भविष्य में जाना, न कुछ पाना, न कहीं कुछ खोजना, बस जहाँ है वहीं रह जाना, नहीं तो सम्पूर्ण उमर बीत जाती है । बुद्ध को जिस दिन उपलब्धि हुई, उस दिन सुबह उनसे लोगों ने पूछा : 'आपको क्या मिला ?" बुद्ध ने कहा : मिला कुछ भी नहीं । जो मिला ही हुआ था, वही मिल गया । कैसे मिला ? बुद्ध ने कहा 'कैसे, की बात मत पूछो। जब तक कैसे की भाषा में मैं सोचता था, तब तक नहीं मिला। क्योंकि जो मिला ही हुआ था, उसको मैं खोजता था । फिर मैंने सब खोज छोड़ दी । और जिस क्षण मैंने खोज छोड़ी, पाया कि जिसे मैं खोजता था वह है हो । असल में स्वभाव का, स्वरूप का मतलब है जो है ही । खोज का मतलब है वह जो नहीं है, उसे हम खोज रहे हैं । इसलिए जब कोई आदमी आत्मा को खोजने लगता है तब वह पागलपन में लग गया है। क्योंकि आत्मा को कौन खोजेगा ? कैसे खोजेगा ? वह तो हैं ही हमारे पास । जब हम खोज रहे हैं तब भी, जब नहीं खोज रहे हैं तब भी । फर्क इतना ही पड़ता है कि अब खोजने में हम उलझ जाते हैं, चूक जाते हैं । नहीं खोजते हैं-दिख जाता है, मिल जाता है, उपलब्ध हो जाता है ।
यह बात ठीक से रूपाल में आ जानी चाहिए कि सामायिक है प्रप्रयास अ-खोज, कोई लक्ष्य नहीं है जो भविष्य में है, यह भी अभी, और यहीं, अगर हम लक्ष्य को खोजते हुए भटकते रहे तो हम चूकते चले जाएँगे, अनन्त जन्मों तक, अगर आप इसी क्षण में हो सकते है, और कुछ भी नहीं करते तो आप वहीं पहुँच जाएँगे जहाँ महावीर सदा से खड़े हैं। लेकिन हमारा मन वही प्रश्न बार-बार उठाए जाता है : कैसे करें ? क्या करें, कहाँ जाएँ ? कहाँ खोजें ? जो नहीं जानते हैं वे कहेंगे उसे जो खोजने की इच्छा कर रहा है 'खोजो ।' जो जानते हैं कहेंगे : और कहीं मत खोजो, जहाँ से प्रश्न उठा है, वहीं उतर जाओ । वे कहेंगे कि जहाँ यह जो भीतर पूछ रहा है कि आत्मा को कैसे पाएँ, मोक्ष को कैसे पाएं, इसी में उतर जाओ। और इसी में उतरने से मोक्ष मिल जाएगा, आत्मा मिल जाएगी । यही है आत्मा; यही है मोक्ष। लेकिन कहीं कुछ मनुष्य के चित्त की पूरी यांत्रिकता में कुछ बुनियादी भूल है कि जाता है। एक बारीक सी बात उसके ख्याल में नहीं आ पाना है, वह मुझे किसी न किसी अर्थ में मिला ही हुआ है
।
अगर यह स्पष्ट रूप
वह चूकता ही चला
पाती कि जो मुझे