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वहाँ भी व्यवस्था दे रहे हैं। मंत्र है, जप है, इन्तजाम है-सब कर रहे हैं। वह सब क्रिया है और क्रिया के पीछे लोग हैं। पयोंकि ऐसी कोई क्रिया ही नहीं जिसके पीछे लोग न हों, पाने की कामना न हो। स्वर्ग है, मोक्ष है, मात्मा है, कुछ न कुछ उन्हें पाना है। उसके लिए वे क्रिया कर रहे है। और जिसके भी पाने की आकांक्षा है, सब पा लें सिर्फ स्वयं को नहीं पा सकते । क्योंकि स्वयं को पाने की आकांक्षा से नहीं पाया जा सकता। पाने की सब बाबा स्वयं के बाहर ले जाती है। जब पाने की कोई आकांक्षा नहीं रखी तो नादमी स्वयं में वापस लौट आता है। यह जो वापिस लौट माना है और घर में ही ठहर जाना है, इसका नाम 'सामायिक' है। महावीर ने अद्भुत व्यवस्था की है उस 'अक्रिया' में उतर जाने की-होने मात्र में उतर जाने की। जिसको समझ में आ जाए उसे करने मात्र का सवाल नहीं है फिर। और जिसकी समझ में न. पाए वह कुछ भी करता रहे, उसे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं।
प्रश्न : मठतालीस मिनट का इसमें क्या हिसाब है?
उत्तर : कुछ मतलब नहीं है। यहां मिनट का सवाल ही नहीं है। एक समब मर ठहर जाना काफी है। एक मष का वो हजारो हिला है, छाखवां हिस्सा है उसमें भी अगर तुम ठहर गए तो बात हो गई।
परन : यह क्यों बनाए हैं सामायिक के?
न्तर : सूत्र अनुयायी बनाते हैं और बांधते हैं। महावीर को कोई सम्बन्ध नहीं है इन सूत्रों से । असल में सदा ही यह कठिनाई रही है कि मनुवायी क्या करता है। यह बड़ा मुश्किल मामला है। वह जो कर सकता है करता है। और वह सब इन्तजाम कर देता है पूरा का पूरा। और उसमें जो महत्वपूर्ण था वह इन्तजाम में ही खो जाता है। और अनुयायी प्रेम से इन्तजाम करता है । वह कहता है कि सब व्यवस्थित कर दो। लोग पूछते है कि क्या करना चाहिए, कितनी देर करना चाहिए, कैसे करना चाहिए। कुछ इन्तजाम करें, नहीं तो लोग कैसे समझेंगे, सामान्य आदमी कैसे समझेगा। सामान्य पावनी के लिए अनुयायी इन्तजाम कर देता है। फिर वह इन्तजाम चलता है। बल का उससे कोई सम्बन्ध नहीं रह पाता।
महावीर जैसे लोगों को समझना हो मुश्किल है। क्योंकि वह जो बार कह है, इतनी गहराई की है, और हम यहां खड़े है वह इतने वेपन में है बल्कि उपलेपन में भी तट पर खड़े हुए हैं और यहां के बोहमारी समय में . माता है, वह इबाम हम करते है। अनुगानी गरी व्यवस्या देखा है, और