________________
भवचन-१०
है और क्षेत्र में ही विलीन हो जाता है। लेकिन क्षेत्र रहेगा। ठीक ऐसे ही समझने की जरूरत है कि समय की जो धारा है, उस धारा में सब चीजें बनेंगी, मिटेंगी। जो तत्व है, सदा से है और सदा है वह समय है।
महाबीर आत्मा को समय का नाम इसलिए भी देना चाहते हैं क्योंकि वही तत्त्व शाश्वत, सनातन, अनादि, अनन्त सदा से और सदा रहने वाला है। सब माएगा, जाएगा। वही भर सदा रहने वाला है। इस कारण भी वह आत्मा को समय का नाम देते हैं। और इस कारण से भी कि आम तौर से हमें ख्याल में नहीं है यह बात कि महावीर की दृष्टि इस सम्बन्ध में भी बहुत गहरी गई है।
आम तौर से हम समय के तीन विभाग करते हैं : अतीत, वर्तमान और 'भविष्य। लेकिन यह विभाजन बिल्कुल गलत है। अतीत सिर्फ स्मृति में है और कहीं भी नहीं। और भविष्य केवल कल्पना में है और कहीं भी नहीं। है तो सिर्फ वर्तमान । इसलिए समय का एक ही अर्थ हो सकता है : वर्तमान । जो है वही समय है । लेकिन अगर कोई पूछे कितना है वर्तमान हमारे हाथ में तो क्षण का कोई लाखों हिस्सा भी हमारे हाथ में नहीं है। जो क्षण का अन्तिम हिस्सा हमारे हाथ में है, उसको महावीर समय कहते हैं । जैसे कि पदार्थ को वैज्ञानिकों ने तोड़कर अन्तिम परमाणु पर ला दिया है और अब परमाणु को भी तोड़ कर इलैक्ट्रोन पर ला दिया है । इलैक्ट्रोन वह हिस्सा है जो अन्तिम खण्ड है, जिसके आगे और खन्ड सम्भव नहीं है। क्योंकि वैज्ञानिक पदार्थ का विश्लेषण कर रहा है, इसलिए उसने पदार्थ के अन्तिम खण्ड को पकड़ने की कोशिश की है। और महावीर चेतना का विश्लेषण कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने चेतना के अन्तिम खण्ड अणु को पकड़ने की कोशिश की है। उस अन्तिम अणु का माम 'समय' है। 'समय' एक विभाजन है वर्तमान क्षण का जो हमारे हाथ में होता है। लेकिन वह छोटा हिस्सा है। जैसे अणु दिखाई नहीं पड़ता है, परमाणु 'दिखाई नहीं पड़ता है, ऐसे ही क्षण का वह हिस्सा भी हमारे बोध में नहीं आ पाता। जब वह हमारे बोध में आता है तब तक वह जा चुका होता है। तो इतना बारीक हिस्सा है, इतना छोटा टुकड़ा है कि जब हम जागते हैं तब तक यह जा चुका होता है। यानी हमारे होश से भरने में भी इतना समय लग जाता है कि समय जा चुका है । जैसे इस क्षण हमारे हाथ में क्या है। अतीत नहीं, वह जा चुका। भविष्य अभी भाषा नहीं। दोनों के चोच में एक बारीक वाल के हजारवें हिस्से का छोट सा टुकड़ा हमारे हाथ में होगा। लेकिन वह इतना छोटा टुकड़ा है कि जब हम बोष से भरेंगे उसके