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महावीर को साधना-पद्धति में केन्द्रिय शब्द है-सामायिक । यह शद बन्ना है समय से । पहले इस शब्द को थोड़ा-सा समझ लेना उपयोगी होगा।
पदार्थ का अस्तित्व है तीन आयामों में : लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई। किसी भी पदार्थ में तीन दिशाएं हैं अर्थात् पदार्थ का अस्तित्व तीन दिशाओं में फैला हुआ है। अगर आदमी में हम इस पदार्थ को नापने जाएं तो लम्बाई मिलेगी, चौड़ाई मिलेगी, ऊंचाई मिलेगी। अगर प्रयोगशाला में आदमी की काट-पीट करें तो जो भी मिलेगा, लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई में घटित हो जाएगा। लेकिन आदमी की आत्मा चुक जाएगी हाथ से। आदमी की आत्मा लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई को पकड़ में नहीं आती है। तीन आयाम है पदार्थ के । आत्मा का चौथा आयाम है। लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई-ये तीन दिशाएं हैं जिनमें सभी वस्तुएँ आ जाती हैं। लेकिन आत्मा की एक और दिशा है जो वस्तुओं में नहीं है, चेतना की दिशा है। वह है समय जो अस्तित्व का चौथा आयाम है। वस्तु हो सकती है तीन आयामों में लेकिन चेतना कभी भी तीन आयामों में नहीं हो सकती। वह चौथे आयाम में हो सकती है। जैसे अगर हम चेतना को अलग कर लें तो दुनिया में सब कुछ होगा, सिर्फ समय नहीं होगा।
समझ लेंकि इस पहाड़ पर कोई चेतना नहीं है तो पत्थर होंगे, पहाड़ होगा, चांद निकलेगा, सूरज निकलेगा, दिन डूबेगा, ऊगेगा लेकिन समय जैसी कोई चीज नहीं होगी। क्योंकि समय का बोध ही चेतना का हिस्सा है । चेतना के बिना समय जैसी कोई चीज नहीं है। और अगर समय न हो तो चेतना भी नहीं हो सकती। इसलिए वस्तु का अस्तित्व है लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई में, और चेतना का अस्तित्व है काल में, समय की धारा में। आइंस्टीन ने फिर