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महावीर : मेरी दृष्टि में कमजोर बुद्धि के लिए दावा चाहिए मजबूत । वह बुद्धिमान् आदमी से चौंक जाता है। उधर अगर कोई दावे से कहे कि यही ठीक है तो बुद्धिमान् आदमी जरा चौंक जाएगा कि यह आवमो कुछ गलत होना चाहिए क्योंकि ठीक का इतना दावा बुद्धिमान् आदमी नहीं करता। बुद्धिमान् आदमी झिझक जाता हैं क्योंकि जिन्दगी बड़ी जटिल है । वह इतनी सरल नहीं कि हमने कह दिया कि 'सब ऐसा है।' जिन्दगी इतनी जटिल है कि उसमें विरोधो के सच होने की भी सम्भावना बनी रहती है। इसलिए जो आदमी जितना बुद्धिमान् होता चला जाता है, उतना हो उसके वक्तव्य 'स्यात्' होते चले जाते हैं। वह कहता है 'स्यात् ऐसा हो', फिर वह एकदम से नहीं कह देता : 'ऐसा है ही।' लेकिन • बुद्धिमान् की जो यह बात है उसे समझने के लिए भी बुद्धिमान ही चाहिए । जितने ज्यादा बुद्धिमान् दावे होंगे उतनी बुद्धिहीनों की संख्या ज्यादा होगी। एकदम दावा होना चाहिए आम आदमी के लिए जैसे कि एक ही अल्लाह है,
और उसके सिवाय दूसरा कोई अल्लाह नहीं। तो फिर आदमी की समझ में माता है कि यह पक्का जानने वाला आदमी है जो साफ दावा कर रहा है और जिसके हाथ में तलवार भी है कि अगर तुमने गलत कहा तो हम सिद्ध कर देंगे तलवार से कि तुम गलत हो। कमजोर बुद्धि के लोगों को तलवार भो सिद्ध करती है। बुद्धिमान् आदमी जिसके हाथ में तलवार देखेगा, उसको गलत ही मानेगा । तलवार से कहों सिद्ध होता है कि क्या सही है, क्या गलत ?
दुनिया में जितने दावेदार पैदा हुए हैं उतनी ज्यादा उन्होंने संख्या इकट्ठी कर ली है। महावोर संस्था इकट्ठी नहीं कर सके है। संख्या इकट्ठी करना बहुत मुश्किल था, एकदक असम्भव था। क्योंकि महावीर किसको प्रभावित करेंगे ? आदमो आता है गुरु के पास इसलिए कि उसे पक्का आश्वासन मिल जाए। जो गुरु उसे कहता है कि लिख कर चिट्ठी देते हैं कि स्वर्ग में तुम्हारी जगह निश्चित रहेगी, वह गुरु समझ में आता है। जो गुरु कहता है कि पक्का रहा मैं तुझे बचाने वाला रहूँगा, जब सब नरक में जा रहे होंगे तब तुझे जो मानता है वह बचा लिया जाएगा। तब वह मानता है कि यह आदमी ठीक है, इसके साथ चलने में कोई अर्थ है। महावीर का कोई भी दावा नहीं है। इतना गैर-वावेदार भावमी ही नहीं हुआ इस जगत् में। उसने सत्य को इतने कोनों से देखा है जितना किसी ने कभी नहीं देखा। .
दुनिया में तीन सम्भावनाओं की स्वीकृति महावीर के पहले से चली आती यो। जैसे कोई कहे यह घड़ा है। तो इसका मतलब यह था कि (१) 'बड़ा