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महाबीर : मेरी दृष्टि में
मार्ग मिलता हो, जहाँ से प्रकाश मिलता हो, वहाँ प्रत्येक को हक है उस प्रकाश की धारा में बहने का और चलने का। जो सत्य दिखाई पड़ता है, उसे मानने 'का हक है प्रत्येक को। फिर महावीर की बात तो बहुत अद्भुत है। महावीर से ज्यादा गैर-साम्प्रदायिक चित्त खोजना कठिन है। लेकिन संप्रदाय के जन्मदाता वही है। तो भी वे गैर-सांप्रदायिक है क्योंकि शायद सारी पृथ्वी पर ऐसा दूसरा आदमी ही नहीं हुआ जिसके पास इतना गैर-सांप्रदायिक वित्त हो। क्योंकि जो किसी की बात को सापेक्ष दृष्टि से सोचता हो उसकी दृष्टि में सांप्रदायिकता नहीं हो सकती। बहुत बाद में आइंस्टीन ने सापेक्षवाद की बात कही है। विज्ञान के जगत् में सापेक्ष की बात आइंस्टीन ने अब कही, धर्म के जगत् में महावीर ने बढ़ाई हजार साल पहले कही। बहुत कठिन था उस वक्त यह कहना क्योंकि उस वक्त आर्यधारा बहुत टुकड़ों में टूट रही थी और प्रत्येक टुकड़ा पूर्ण सत्य का दावा कर रहा था। असल में साम्प्रदायिक चित्त का मतलब यह है कि जो यह कहता हो कि मूल्य यहीं है और कहीं नहीं। साम्प्रदायिक चित्त का मतलब है कि सत्य का ठेका मेरे पास है और किसी के पास नहीं। और सब असत्य है, सत्य मैं हूँ। ऐसा जहाँ आग्रह हो, वहाँ साम्प्रदायिक चित्त है । लेकिन जहाँ इतना विनम्र निवेदन हो कि मैं जो कह रहा हूँ वह भी सत्य हो सकता है, उससे भी सत्य तक पहुंचा जा सकता है तो सम्प्रदाय निर्मित होगा पर साम्प्रदायिक चित्त नहीं होगा वहाँ । सम्प्रदाय निर्मित होगा इन अर्थों में कि कुछ लोग जाएंगे उस दिशा में, खोज करेंगे, पाएंगे, चलेंगे, अनुगृहीत होंगे उस पंथ की तरफ, उस विचार की तरफ ।
महावीर एकदम ही गैर-साम्प्रदायिक चित्त हैं। बहुत ही अद्भुत है उनकी दृष्टि । वह जहां बिल्कुल ही कुछ न दिखाई पड़ता हो वहाँ भी कहते हैं कि कुछ न कुछ होगा। चाहे दिखाई न पड़ता हो तो भी कुछ न कुछ सत्य होगा क्योंकि पूर्ण सत्य भी नहीं होता, पूर्ण असत्य भी नहीं होता। असत्य में भी सत्य का अंश होता है, सत्य में भी असत्य का अंश होता है। वह कहते हैं कि इस पृथ्वी पर पूर्ण जैसी कोई चीज नहीं होती, सब चीजें अपूर्ण होती है । अगर कोई उनसे पूछे कि ऐसा है तो कहेंगे 'हाँ' है।' और साथ यह भी कहेंगे कि 'नहीं भी हो सकता है महावीर की सापेक्षता भी एक कारण बनी महावीर के अनुयायियों की संख्या न बढ़ने में। क्योंकि संख्या बढ़ने में अन्धदृढता का होना जरूरी है. संख्या तब बढ़ती है जब दावा पक्का और मजबूत हो कि जो हम कह रहे हैं, वह सही है, और जो दूसरे लोग कह रहे हैं, सब ठीक नहीं। तब पागल इकट्ठे